पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/४२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३९४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जनताके समक्ष आलोचनार्थ प्रस्तुत है और जब कि सिविल सर्विसके अधिकारीगण तथा आंग्ल-भारतीय पूंजीपति इस भयसे कि अबतक भारतीय जनताके हितोंको कुचलते हुए जो उत्तम जगहें उनके हाथमें थीं वे अब कहीं निकल न जायें, उचित और अनुचित सभी प्रकारके उपाय काम में ला रहे हैं ताकि सुधार योजनाकी हितकारिता नष्ट हो जाये, और ऐसे समय में जब कि भारतका सर्वोच्च अधिकारी वाइसराय शाही परिषद् में एक घोषणाके द्वारा उन्हें स्पष्ट रूपसे तरह दे रहा है-जो कि निहित स्वार्थके शोरगुलके सामने घुटना टेकनेके तुल्य है। कोई भी भारतीय, रौलट विधेयकके विधान संहितामें रहते हुए भारतके भावी राजनैतिक जीवनके बारेमें स्थिर चित्तसे कुछ भी नहीं सोच सकता । इस देशमें रौलट विधेयकोंका विरोध जिस सर्व सम्मतिके साथ किया जा रहा है वह बेमिसाल है । और जब १८ मार्चको शाही परिषद् में विधेयक संख्या १ पास होकर कानून बना उस समय परिषद्के एक भी भारतीय सदस्यने उसके पक्षमें वोट नहीं दिया था। इस विधेयकके सख्त विरोधके कारण रौलट अधिनियम १ की अवधि केवल तीन बरस रखी गई और उसे क्रांति और अराजकतागत अपराधोंसे सम्बन्धित कानून [ द रेवोल्यूशनरी ऐंड अनार्किकल क्राइम्स ऐक्ट ] नाम विशेषतया दिया गया था । परन्तु ये रियायतें व्यवहारतः शून्यवत् थीं ।

इस सब परिस्थितियोंपर विचार करनेके बाद मैं इस निष्कर्षपर पहुँचा कि रौलट अधिनियम के विरोधमें 'सत्याग्रह' प्रारम्भ किया जाय। फरवरी, १९१९ के अन्तमें मैंने तथा अन्य नेताओंने सत्याग्रह - शपथ ली । जनतासे भी निवेदन किया गया कि वह भी शपथ ले । प्रतिज्ञापत्रमें कहा गया है कि रौलट अधिनियम अन्यायपूर्ण है इस तथ्यको समझके साथ मानते हुए हस्ताक्षरकर्त्ता सत्याग्रह करेंगे और सत्यको अपनाने तथा हिंसा न करनेके लिए वचनबद्ध होंगे। मैंने भारतका दौरा किया, सर्वत्र सत्याग्रह के सिद्धान्त लोगोंको समझाये । जब रौलट विधेयक सं० १ अधिनियम बन गया तब प्रारम्भिक कदमके रूपमें मैंने यह सुझाया कि उसके निमित्त लोग हड़ताल और २२ घंटेका उपवास करें। इसके लिए तारीख ३० मार्च, १९१९ नियतकी गई। बादको यह तारीख बदलकर ६ अप्रैल कर दी गई, परन्तु कुछ जगहों में यह काम ३० मार्चको ही किया गया। उस दिन दिल्लीमें अधिकारियों द्वारा किसी-न-किसी बहाने जनताकी भीड़पर गोलियाँ चलाई गईं। परिणाम स्वरूप कुछ मरे, बहुतसे घायल हुए। इस घटनासे देश-भरमें जोशकी ऐसी लहर दौड़ी कि ६ अप्रैलको होनेवाले प्रदर्शन में बहुत बड़ी संख्या में लोग आये; हमारे आंग्ल-भारतीय आलोचकोंतक को यह मानना पड़ा कि वह प्रदर्शन अभूतपूर्व था। अप्रैल ७ को स्वयंसेवकों द्वारा जब्त-शुदा साहित्य, जिसमें 'हिन्द-स्वराज्य' पुस्तक भी थी, सब केन्द्रोंमें बेचा गया । आठवीं अप्रैलकी शामको मैं दिल्लीके हालातसे अपनेको अवगत करानेके लिए वहाँके लिए रवाना हुआ। पंजाब सरकारने मेरे नाम हुक्मनामा भेजा कि मैं पंजाबके इलाकेमें प्रवेश न करूँ और भारत सरकारने यह आदेश दिया कि मैं बम्बई प्रान्तके अन्दर ही रहूँ । सत्याग्रहीकी हैसियतसे में इस हुक्मकी तामील न कर सका। मेरे पंजाब में प्रविष्ट होते ही मैं गिरफ्तार कर लिया गया । मुझे अपनी इस गिरफ्तारीपर बहुत हर्ष हुआ क्योंकि शरीरकी रक्षाका भार सरकारने उठा लिया और मेरी अन्तरात्मा