स्वदेशीके सम्बन्धमें मेरी राय यह है कि जो कुछ तुम घरसे लाई हो, उसका त्याग मत करो; तुम्हारे लिए इतना काफी है कि अपनी वर्तमान आवश्यकताएँ स्वदेशी वस्तुओंसे ही पूरी किया करो। शपथ अपने निजी वस्त्रोंतक ही सीमित है ।
यदि तुम्हारे निकायकी[१] अनुमति मिल सके तो अपने स्कूलमें चरखा जारी करना ।
तुम्हारे बारेमें मेरा यह कहना है कि तुम श्री बिटमैनसे राय लो और जैसा वे कहें वैसा करो। मैं उन्हें लिखूँ ? मैं नहीं चाहता कि तुम जल्दबाजी या गुस्से में आकर कोई कदम उठाओ। फल तो वैसे अच्छा ही होगा । पत्र लिख दिया करो।
- हार्दिक स्नेहके साथ,
- जल्दी में लिखा ; दुहराया नहीं ।
तुम्हारा,
माई डियर चाइल्ड
३६२. पत्र : गिलिस्पीको
लैबर्नम रोड
गामदेवी
बम्बई
जून २७, १९१९
आपका पत्र मिला; धन्यवाद । जानता हूँ कि किसी रविवारको आश्रम आनेमें आपको बड़ी तकलीफ होगी, फिर भी मैं आपसे बातचीत करनेके लिए इतना उत्सुक हूँ कि न आनेकी बात भी कहते नहीं बनती। आपने स्वदेशीके सम्बन्धमें जो मुद्दे उठाये हैं, उनपर ही बातचीत करनी है। यह तो मुझे मालूम ही न था कि आपका जन्म उस नगरमें[२]हुआ था जहाँ मेरे पिता कई वर्षों तक दीवान रहे और जहाँ उन्होंने अपने जीवनके अन्तिम दिन गुजारे ।
हृदयसे आपका,
अंग्रेजी (एस० एन० ६६९३) की फोटो - नकलसे ।