पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१४. पत्र : 'टाइम्स ऑफ इंडिया ' को

नडियाद
अगस्त १०, १९१८

सेवामें
सम्पादक
टाइम्स ऑफ इंडिया '
महोदय,

सूरतकी एक सभामें रंगरूटोंकी भरतीके सिलसिलेमें दिये गये मेरे भाषणकी आपने जो रिपोर्ट दी है उससे मालूम पड़ता है कि एक सार्वजनिक व्यक्तिके लिए लिखित भाषण पढ़नेके अलावा कुछ कहना कितना खतरनाक है । जब मैं अपने भाषणोंके प्रकाशित विवरणोंकी बात सोचता हूँ तो मुझे श्री तिलकसे सहानुभूति होती है । मेरा निश्चित विचार है कि जबतक रिपोर्ट करनेका ऐसा ढंग रहेगा, जैसा कि भारतमें है, तबतक उन्हें चुनौती देना और जो बातें वक्ताकी कही गई बताई गई हैं, उनका खण्डन वक्ता करे तो उसे स्वीकार कर लेना ही सबसे अधिक सुरक्षित तरीका है। बहुत सम्भव है कि श्री तिलकपर भाषण न देनेका जो प्रतिबन्ध लगाया गया है वह अन्यायपूर्ण हो । मुझे ऐसा नहीं लगता कि उनके बोलनेपर प्रतिबन्ध लगानेसे महाराष्ट्रमें रंगरूटोंकी भरती बढ़ जायेगी; किन्तु मैं निश्चित रूपसे जानता हूँ कि उससे यहाँ गुजरातमें मेरी स्थिति कठिन हो जायेगी । बहुतसे लोग केवल श्री तिलकके बोलनेपर प्रतिबन्ध लगानेके विरोधस्वरूप अलग रहने लगेंगे। यह उनकी ओरसे सफाई देना नहीं है; इस मामले में मेरा उनसे मतभेद है और मैंने उनसे कहा है कि वे जो कुछ चाहते हैं, अगर उन जैसे व्यक्ति रंगरूट भरती करनेका काम हाथमें ले लें तो यह निश्चय ही प्राप्त हो जायेगा । इससे उत्तरदायी शासन अपेक्षाकृत जल्दी मिल जायेगा; क्योंकि उनके मनमें हमारे इस सहयोगसे हमारे प्रति विश्वास पैदा होगा और हम भी आजकी अपेक्षा कहीं अधिक शक्तिसम्पन्न हो जायेंगे। मैं तो केवल यह आशा ही कर सकता हूँ कि सरकार अपने निर्णयपर पुनर्विचार करेगी और [ श्री तिलकके ] बोलने पर लगाये प्रतिबन्धको हटाकर भरती करनेवालोंके मार्गसे एक बहुत बड़ी रुकावटको दूर कर देगी ।

किन्तु मैं अपने मुख्य विषयसे दूर चला गया हूँ। मैं यह बताना चाहता हूँ कि मैंने [ अपने उक्त भाषणमें] कभी ऐसा नहीं कहा कि जो लोग कुछ शर्तोंपर ही सहायता दे सकनेकी बात करते हैं उन्हें उनके अपने-अपने दलोंसे बहिष्कृत कर दिया जाना चाहिए । मैंने उसमें साम्राज्यको सहायता देनेपर भी जोर नहीं दिया था; बल्कि भरतीके प्रश्न पर श्री तिलकके और अपने विचारोंमें भेद बतानेके बाद मैंने श्रोताओंकी उलझन भरी परिस्थितिके प्रति हमदर्दी जाहिर की थी क्योंकि उनके लिए श्री तिलक जैसे महान्, सुप्रसिद्ध तथा आत्मत्यागी देशभक्तकी और मेरी सलाहोंमें से एकको चुनना आसान नहीं था । किन्तु मैंने उनसे कहा कि अगर उत्तरदायी शासन प्राप्त करनेकी दिशामें



Gandhi Heritage Portal