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पत्र : सुरेन्द्रनाथ बनर्जीको

प्रगति करना है तो अब नेताओंके फरमानोंपर ही अवलम्बित नहीं रहा जा सकता, फिर वे नेता कितने ही बड़े क्यों न हों। उन्हें स्वयं विरोधी विचारोंको निरन्तर तोलते रहकर अपना चुनाव करना होगा, और फिर भी उन्हें जिन नेताओंके विचार अस्वीकार करनेके लिए मजबूर होना पड़ा है, उनके प्रति अपने आदर भावमें किसी प्रकारकी कमी नहीं आने देनी चाहिए। इसके बाद मैंने उन्हें बताया कि उन्हें सेनामें भरती हो जाना चाहिए और यह भी बताया कि क्योंकर ऐसा करना सब प्रकारसे उनके हित में है । अन्तमें मैंने अपने मनोनीत विचार श्रोताओंके सामने रखे कि यदि वे ब्रिटिश सरकारके साथ साझीदार बनना चाहते हैं तो उनके उद्देश्यको प्रभावित करनेका सबसे सुन्दर ढंग यह है कि वे युद्धके समय उनकी सहायता करें। किन्तु आपके संवाददाताने साम्राज्यको सहायता देनेकी बातको मेरे भाषणकी मुख्य बात कह दिया। खैर में इसकी परवाह नहीं करता । किन्तु मैं निश्चित रूपसे इस तथ्यपर जोर देना चाहता हूँ कि यदि सार्वजनिक व्यक्तियोंको उनके भाषणोंकी अखबारोंमें छपी रिपोर्टके आधारपर परखा जाये तो ज्यादातर भाषणकर्त्ता घटिया लगेंगे । आपका पत्र प्रभावशाली है इसलिए क्या आप अपने स्तम्भोंमें सार्वजनिक भाषणोंकी सही रिपोर्ट ही प्रकाशित करनेका आश्वासन नहीं दे सकते ?

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
टाइम्स ऑफ इंडिया, १३-८-१९१८


१५. पत्र : सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जीको

अगस्त १०, १९१८

प्रिय श्री बनर्जी,[१]

मैं अभी यहाँ सैनिक भरतीके काममें लगा हुआ हूँ । अहमदाबादसे पुनः प्रेषित आपका तार मुझे मिल गया । मैं कलकत्ते आऊँ, तो जाने-आनेमें ही मुझे कमसे कम एक सप्ताह लग जायेगा। मुझे अपना काम अच्छी तरह करना हो, तो में इतने लम्बे अर्से तक गैरहाजिर नहीं रह सकता। फिर, अभी तो में दूसरी जगह जा ही नहीं सकता; क्योंकि अभी-अभी मुझे सरकारसे खबर मिली है कि गुजरातमें सैनिक शिक्षण केन्द्र खोलने और गुजरातका एक सैनिक दल बनानेका मेरा प्रस्ताव उसने स्वीकार कर लिया है । आप सहमत होंगे कि मैं इसे नहीं छोड़ सकता ।

मेरा आना सम्भव होता, तो भी शायद मैं इसमें कोई बड़ी मदद न दे पाता । इस मामलेमें मेरे विचार बहुत सख्त और अजीब-से लगनेवाले हैं। अधिकांश नेता उनसे सहमत नहीं हैं। मैं सच्चे दिलसे मानता हूँ कि अन्य काम छोड़कर यदि हम

  1. सर सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ( १८४८ - १९२५ ); भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके एक संस्थापक और पूना- अधिवेशन (१८९५) के अध्यक्ष केन्द्रीय परिषद् के एक सदस्य ।