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पत्र: एम० ए० जिन्नाको

उद्देश्यसे दिल्ली जा रहा था। अप्रैलके उन दुर्दिनोंकी याद आते ही मनमें यह बात आये बिना नहीं रह सकती कि अगर सरकारने मुझपर वे नोटिस तामील करवानेकी भूल न की होती तो उस माहका इतिहास कुछ और ही शब्दोंमें लिखा गया होता। इसके अतिरिक्त मुझे गिरफ्तार कर लिये जाने तथा मुझे जेल भेज दिये जानेके पश्चात् जनतामें जिस उत्तेजनाके फैलनेकी सम्भावना है, उसे रोकने के लिए मैं असाधारण सतकैतासे काम ले रहा हूँ। अपने साथी सत्याग्रहियोंके नाम में जो हिदायतें जारी कर रहा हूँ उसकी प्रूफ प्रतिलिपिको पढ़नेपर आप जान जायेंगे कि फिलहाल सत्याग्रह केवल मुझतक ही सीमित रहेगा और जबतक इस बातका पक्का विश्वास न हो जायेगा कि हिंसा न होगी तबतक दूसरे लोग सत्याग्रह शुरू न करेंगे।

अन्तमें, मैं यह पूछना चाहता हूँ कि क्या यह अनिवार्य है कि प्रजा हमेशा गलती पर हो और सरकार जो कुछ करे वह सब सही ही हो ? क्या किसी सरकारके लिए यह उचित न होगा कि वह अपनी साफ-साफ गलतियोंको कबूल करके अपना कदम पीछे हटा ले ? मैं सादर निवेदन करता हूँ कि सरकारके लिए रौलट अधिनियमके बारेमें स्थितिपर पुनर्विचार करनेका उपयुक्त समय यही है ।

आपने पत्रके अन्तिम अनुच्छेद में जो आश्वासन आपने दिया है उसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ और आशा करता हूँ कि निकट भविष्यमें बनाई जानेवाली समिति स्वतन्त्र होगी और उसमें सभी पक्षोंके प्रतिनिधि रखे जायेंगे; और वह मार्शल लॉके अन्तर्गत दी गई सजाओंपर पुनर्विचार भी कर सकेगी। यह भी आशा है कि श्री राय शीघ्र रिहा कर दिये जायेंगे ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० ६६९७) की फोटो - नकलसे ।


३६८. पत्र : एम० ए० जिन्नाको

बम्बई
जून २८, १९१९

प्रिय श्री जिन्ना,[१]

आपका पत्र पाकर मुझे बहुत हर्ष हुआ । यहाँ जो कुछ हो रहा है उससे निश्चय ही आपको अवगत कराता रहूँगा । सुधार विधेयक [ रिफॉर्म्स बिल] के बारेमें कुछ भी कहना सम्भव नहीं है । मैंने उसे गौरसे पढ़ा भी नहीं है । मैं आजकल रौलट अधिनियमके सम्बन्धमें व्यस्त रहा करता हूँ । उसके अलावा और भी बाते हैं, जैसे पंजाबकी घटनाएँ, कालीनाथ रायकी गिरफ्तारी, ट्रान्सवाल और स्वदेशीका काम; इस तरह गट्ठर

 
  1. मुहम्मद अली जिन्ना ( १८७६ - १९४८ ); मुस्लिम नेता; पाकिस्तान के संस्थापक तथा उसके प्रथम गवर्नर जनरल ।