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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सैनिक भरतीके काममें जुट जायें तो हमें अधिकसे-अधिक एक वर्षमें पूर्ण उत्तरदायी शासन मिल सकता है। निरे अज्ञानी अपने देशबन्धुओंको अनिच्छासे फौजमें भरती होने देनेके बजाय, हमें 'होमरूल' के समर्थकोंकी एक सेना खड़ी कर देनी चाहिए, जो यह समझकर राजीखुशीसे सिपाही बनें कि हम लड़ाईमें देशके लिए जा रहे हैं। साथ ही, मैं मानता हूँ कि हमें मॉण्टेग्यू-चेम्सफोर्ड योजनाके बारेमें अपनी राय असन्दिग्ध भाषामें प्रकट कर देनी चाहिए। हमें अपनी कमसे-कम माँगें तय करके किसी भी कीमतपर उनपर अमल करानेका प्रयत्न करना चाहिए। मेरी राय है कि योजना मूलत: अच्छी है, फिर भी उसमें काफी फेरफार कराना जरूरी है। इस मामलेमें हमारे लिए सर्वसम्मत निर्णयपर पहुँचना मुश्किल नहीं होना चाहिए। मैं चाहता हूँ कि देशमें एक दल ऐसा हो, जो केवल इन दो बातोंको ही जीवनका ध्येय बनाये: अर्थात् एक तरफ तो युद्ध चलानेमें सरकारकी मदद करे और दूसरी तरफ राष्ट्रीय माँगोंपर अमल कराये।

मैं नहीं मानता कि आज जैसे नाजुक समयमें हम कथित गर्म और नर्म दलके बीच एक-दूसरेके हकमें थोड़ी-बहुत रिआयतें ले-देकर ऊपरी सुलह कराके सन्तुष्ट हो जायें; मैं चाहता हूँ कि हरएक संस्था या दल अपनी-अपनी नीतिकी स्पष्ट व्याख्या करे। फिर जो दल स्वाभाविक तौरपर अपने पक्षके आन्तरिक गुणों और निरन्तर प्रचारके कारण देशमें बलवान बन जायेगा, वह 'हाउस ऑफ कामन्स' से अपनी बात मनवा सकेगा।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य: नारायण देसाई
प्रिय प्रोफेसर जेवन्स,

१६. पत्र: प्रोफेसर जेवन्सको [१]

अगस्त ११, १९१८

प्रिय प्रोफेसर जेवन्स,

मैं आपकी टिप्पणी पढ़ गया हूँ। कुल मिलाकर वह मुझे पसन्द है। सरकारको जितने आदमियोंकी जरूरत हो, उतने हमें जुटा देने चाहिए, पर सरकारी अफसरोंके द्वारा नहीं, बल्कि 'होमरूल' की संस्थाओं द्वारा हम यह कर सकें, तो 'होमरूल' हमारे हाथमें समझिये।


  1. हर्बर्ट स्टेनली जेवन्स (१८७५-१९५५); अर्थ-शास्त्री। यह पत्र प्रोफेसर जेवन्सकी "इंडियाज़ शेयर इन द वर" नामक उस टिप्पणीके उत्तरमें लिखा गया था, जिसमें उन्होंने करोंमें वृद्धि करनेका सुझाव दिया था।