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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


कपड़ेका सर्वथा त्याग करना चाहिए। किन्तु रामीबाई कामदारने यह आपत्ति की है कि कीमती साड़ियों और अन्य वस्त्रोंको फेंक देनेसे भारी हानि उठानी पड़ेगी; इसलिए [ वे कहती हैं कि ] उनका उपयोग कर लेनेके बाद जो भी नया कपड़ा खरीदा जाये वह स्वदेशी ही होना चाहिए तो ठीक होगा। इस कारण यह तीसरा रूप रखा गया है । यदि प्रतिज्ञा करनेके बाद उसका पालन न किया जाये तो हमारी उतनी ही बदनामी होगी जितनी व्रत लेनेसे पहले हुई थी ।

जिस समय भारतीय यह दृढ़ निश्चय कर लेंगे कि स्वदेशी कपड़ा न मिले तो हम लंगोटीसे ही गुजारा कर लेंगे तब भारत निस्सन्देह बहुत ऊंचा उठ जायेगा । मैं आपसे अभीसे तो ऐसी आशा नहीं कर सकता। इसी कारण ये भाग करने पड़े हैं ।

इस कार्यको शुरू हुआ जानकर जो हमारे मित्र हैं, यदि वे अपनी हमदर्दी दिखायेंगे अथवा हमारा अभिनन्दन करेंगे तो उससे हमें सन्तोष अथवा आनन्दकी ही प्राप्ति होगी। किन्तु यदि आपको अपनी आरम्भिक प्रवृत्तिसे कुछ शिक्षा लेनी हो तो आपको अपने आलोचकोंके पास जाना चाहिए और वे क्या कहते हैं, यह सुनना चाहिए । वे हमें हमारे दोष ढूँढ़कर दिखायेंगे और हम उन दोषोंको दूर करनके लिए तैयार हो सकेंगे और इस प्रकार हम अपने प्रयोगको निर्दोष बना सकेंगे । मैं बम्बई में श्री वाड़िया और श्री फजलभाई करीमभाईसे मिला था । श्री फजलभाईने मुझे चेतावनी देते हुए पूछा, आप लोगोंसे प्रतिज्ञा लेकर क्या कराना चाहते हैं । हम इतना कपड़ा ही तैयार नहीं कर सके हैं जिससे लोगोंकी माँगोंकी पूर्ति हो सके। उसके लिए अभी ५० वर्ष चाहिए। भाई वाडियाका दृष्टिकोण अतिरेकपूर्ण था । उन्होंने कहा कि लोगों को जैसा कपड़ा चाहिए हमें वैसा ही कपड़ा जुटाना चाहिए। किन्तु उनका यह विचार भी उनके अतिरेकपूर्ण दृष्टिकोणका परिचायक था । मैंने उन्हें यह उत्तर तो दिया था कि जैसे आप लाखों रुपये अपने व्यवसायको बढ़ाने में खर्च करना जानते हैं वैसे ही आप जनरुचिके पोषण और स्वदेशीके अबाध प्रचारमें करोड़ों रुपये खर्च करें और उसके लिए साधन जुटायें; लेकिन इतने उत्तरसे आत्मसन्तोष नहीं हो सकता । देशमें मलमल और अतलस आदि वस्तुएँ अब भी अच्छी बनती हैं। दूसरी चीजें भी बनाई जा सकती हैं; किन्तु कारीगर नहीं हैं। उसी प्रकार इस धन्धेको जन्म देनेवाले और इसे उत्तेजन देनेवाले लोगोंकी भी कमी जान पड़ती है ।[१]

स्वदेशीकी प्रतिज्ञाका प्रभाव ऐसा है कि उसको लेनेसे ही बल मिलेगा और बल मिलनेसे यह उद्योग विकसित हो सकेगा । बम्बईमें इस उद्योगको आरम्भ कर दिया गया है और अन्य स्थानोंमें भी आरम्भ किया जा रहा है। यह बात मैंने तब महसूस की जब बम्बईमें चरखोंसे रुई कातनेके तीन केन्द्र खोले गये । मैं स्वयं एक घंटा कातने बैठा तब मुझे मालूम हुआ कि उसमें कितनी कला है। यह काम मुझे बहुत ही सही जान पड़ा है ।

शंकरलाल बैंकरकी माँ और रमाबाई ये दोनों खास तौरसे इस क्षेत्रमें काम करने लगी हैं। ये बहनें सूत कातकर दूसरी बहनोंको दिखाती हैं। अच्छी तरह चरखा

  1. इसके बाद गांधीजीने लीडरमें छपे एक तर्कका उत्तर दिया । किन्तु उनके भाषणका वह अंश उपलब्ध नहीं है ।