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भाषण : अहमदाबादमें स्वदेशीपर

चलाना और सूत कातना सीखने में छ: महीनेसे ज्यादा वक्त नहीं लगता । सीखनेकी कोई फीस नहीं देनी पड़ती। मैं तो यही चाहता हूँ कि जापानकी प्रचलित औद्योगिक प्रवृत्तिकी पृष्ठभूमिमें उसका लोकमत जैसा तैयार हो रहा जान पड़ता है वैसी प्रवृत्ति और वैसे आदर्शोंको भारतके लोग ग्रहण न करें । औद्योगिक आयोग बैठते हैं और उनके विवरण प्रकाशित होते हैं । किन्तु उनका ढंग दूसरा है, मेरा ढंग [ उनसे ] जुदा है । मैं वर्षोंतक प्रतीक्षा नहीं कर सकता। पूरी तरह विचार करनेके बाद हमारे ऋषि-मुनियोंने यह पता लगाया था कि हमें सूत कातना चाहिए, क्योंकि जीवन-निर्वाहके लिए अन्नके बाद दूसरी आवश्यक वस्तु अगर कोई है तो वह अंग ढकनेके लिए वस्त्र ही है ।

सत्याग्रह आश्रम में एक वर्षसे इस धन्धेकी प्रवृत्ति चल रही है । इस अर्से में वहाँ बीस हजार रुपयेका कपड़ा तैयार हुआ है । मैं आपका ध्यान अकाल-निवारण समितिकी ओर आकर्षित करता हूँ । समितिने लोगोंको मुफ्त सहायता देने के बजाय उनसे कपड़ा बनवानेका काम लेकर सहायता देनेकी परम्पराको अपनाया। ऐसा करनेसे अनेक लोग भिखारी बननेके बजाय धन्धेवाले बन गये। मैं आपसे यह नहीं कहता कि यदि आपके पास पहलेसे कोई धन्धा हो तो आप उसे छोड़ दें और बिलकुल इसी काममें लग जायें। यदि आप फालतू समयमें इस कामको करते रहेंगे तो भी हमें बहुत अच्छा लाभ मिलेगा। आप अपने घरोंमें चरखा चलवायें। पुरुष और यदि पुरुष नहीं तो स्त्रियाँ ही सूत कातना सिखायें ।

यदि समस्त देशमें से सिर्फ १० लाख स्त्रियाँ एक-एक घंटा रोज सूत कातनेमें लगायें तो यह काम कितना बढ़ जाये । एक घंटे में दो तोला सूत कतता है । यह तो एक प्रयोगकी बात है । बादमें जब लोगोंको इससे अच्छा लाभ होता दीख पड़ेगा तो वे अगणित संख्यामें इसमें लग जायेंगे और इसे अपना धन्धा बना सकेंगे ।

स्वदेशी सभाकी एक शाखा अहमदाबादमें भाई चमनलाल चिनाईके मस्कती बाजार स्थित कार्यालयमें खोली गई है। सेवक लोग वहाँ जाकर अपना नाम दर्ज करा सकते हैं और वहाँसे आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। स्वयंसेवक स्वयं रुई कातकर, दूसरे कातनेवालोंको तैयार करके और लोकमत प्रशिक्षित करके विविध प्रकारसे सेवा कर सकते हैं ।

[ गुजरातीसे ]
गुजराती, १३-७-१९१९