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३७४. भाषण : अहमदाबाद में[१]

जून २९, १९१९

मैं जानता हूँ कि परम देशभक्त भारत भूषण पं० मदनमोहन मालवीयके, जो मुझे अपना बड़ा भाई मानते हैं, आज यहाँ न आ सकनेके कारण आपको निराशा हुई होगी। किन्तु मुझे आपकी अपेक्षा कहीं अधिक निराशा हुई है । यह कार्य उन्हींके हाथोंसे सम्पन्न होना था । ऐसा नहीं हो सका, इससे हम समझ सकते हैं कि सुलोचना बहन और रुक्मिणी बहनको कितना दुःख हुआ होगा । पंडितजी सम्भवतः कुछ समय पहले यहाँ आ सकते थे । वे बम्बईमें आये थे; लेकिन उस समय जो घटनाएँ हुईं और जिनपर हम अंकुश नहीं रख सके उनके कारण यह कार्य स्थगित कर दिया गया। फिर भी मेरी इच्छा थी कि इस कार्यको मालवीयजी ही सम्पन्न करें; किन्तु अब उन्हें लाहौर जाना पड़ा है और स्वयं मालवीयजीका आदेश यह है कि इस कार्यको मैं सम्पन्न करूँ । इसलिये उनके प्रतिनिधिके रूपमें मैं इस कार्यको सम्पन्न करता हूँ। उनके विचार ध्यानमें रखने योग्य हैं। पुरुष स्त्रियोंके कितने ऋणी हैं, इस बारेमें उन्होंने जो विचार व्यक्त किये हैं, में उनसे सहमत हूँ ।

मैं १९१५ से भारतके विभिन्न स्थानोंमें भ्रमण कर रहा हूँ और इस बीच यह कहता आया हूँ कि जबतक स्त्री पुरुषके साथ खड़ी रहकर अपना हक नहीं माँगती तबतक उसकी उन्नति नहीं होगी । तबतक हमारी प्रगति होना भी असम्भव है । यदि गाड़ीका एक पहिया चालू रहे और दूसरा टूट जाये तो वह गाड़ी ठीक-ठीक नहीं चल सकती। यहाँ अभी थोड़ी देर पहले बहनोंने इस आशयका जो गीत आया है, वह ठीक ही है । 'मुण्डे मुण्डे मतिभिन्ना' होती है । अतः इस सम्बन्धमें भी वैसी ही बात हो सकती है । प्रत्येक मनुष्यकी जेबमें मानो पहलेसे गढ़ी हुई चित्र-विचित्र योजनाएँ पड़ी रहती हैं और वे स्त्रियोंकी शिक्षाके सम्बन्धमें एक दूसरेसे भिन्न सुझाव प्रस्तुत करते हैं। मुझे तो वे यहाँ हवाई जहाजसे फेंके गये पत्रकोंके समान ही लगते हैं। किन्तु इससे वनिता-विश्रामके संस्थापकोंको घबरानेकी आवश्यकता नहीं है। शान्तिसे और प्रयोगोंसे ही कार्य सधेगा। हमें भूल करनेसे डरना नहीं चाहिए और प्रयोगोंसे घबराना नहीं चाहिए। यदि हम आगे नहीं बढ़ेंगे तो पीछे रह जायेंगे। इसलिए व्यवस्थापकोंको अपने नियमों का पालन करते हुए प्रयोग करते रहना चाहिए। हमसे भूलें होंगी और यदि हम उन्हें सुधारेंगे तो उससे हमें अपने लक्ष्यकी प्राप्ति होगी।

इस वनिता-विश्रामकी रिपोर्ट देखनेसे पता चलता है कि सुलोचनाबहनने अपने वैधव्यको कीर्तिमान कर दिया है। यदि हममें सचमुच अनुभव करनेकी शक्ति हो तो हमें वैधव्य में सौन्दर्य दिखाई देगा। वैधव्यके सम्बन्धमें [ पमस्पर विरोधी ] दो मत प्रसिद्ध हैं;

  1. गांधीजीने वनिता-विश्राम कन्या पाठशालाके भवनका शिलान्यास किया था । यह भाषण उसी अवसरपर दिया गया था ।