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भाषण : अहमदाबादमें

फिर भी यह तो सच ही है कि जिन लोगोंमें जितनी शक्ति और आत्मिक उच्चता होती है वे उतना ही अधिक अपना और अन्य लोगोंका हित-साधन कर सकते हैं। प्रत्येक विधवा अपनी शक्ति और आत्मा - इन दो चीजोंको जन्म भूमिकी भेंट करे, यह उसका विशेष धर्म है । यदि हम चाहें तो नरसिंह मेहताके शब्दों में कह सकते हैं कि बहन सुलोचनाने वैधव्यको प्राप्त होने के बाद सब भारोंसे मुक्त हो जाने पर भी जननी जन्मभूमिको वर लिया है। उनके अथक परिश्रमके फलस्वरूप ही यह संस्था आज अच्छा काम कर रही है ।

इस महान् कार्य में भाई सोमनाथके दानसे बड़ी सहायता मिली है। अभी यहाँ दानके सम्बन्धमें जो कुछ कहा गया है, उसके बारेमें में यह कहूँगा कि यदि काम करनेके पीछे भावना शुद्ध हो तो धन अपने-आप आ जाता है । जब रिपोर्ट पढ़ी जा रही थी, मुझे कुछ निराशा-भरे शब्द सुनाई पड़े। इस छोटी-सी संस्थाको धनके लिए 'भिक्षां देहि' कहते हुए आफ्रिका जाना पड़े, यह व्यवस्थापकोंके लिए खेदजनक और अहमदाबादके लिए लज्जाजनक बात है । अहमदाबादके लोगोंको तो यह कहना चाहिए, जबतक हम जीवित हैं, तबतक धन माँगनेके लिए हम तुम्हें हरगिज बाहर नहीं जाने देंगे। यह अभयदान देना उनका काम है । मेरे खयालसे इस संस्थाके संस्थापकोंको दक्षिण आफ्रिका जानेकी जरूरत नहीं है। उन्हें इस शहरके लोगोंसे ही धन प्राप्त करना चाहिए और यदि वे न दें तो उनके सामने सत्याग्रह करना चाहिए। मुझे लगता है कि व्यवस्थापक प्रौढ़ नहीं हैं; उनमें सब कुछ है, लेकिन आत्मविश्वास नहीं। उन्हें आत्मविश्वास रखकर शहरके लोगोंका मन द्रवित करके उनसे ही रुपया लेना चाहिए।

इस संस्थाको धनकी जितनी जरूरत है, व्यवस्थाके लिए जितनी जरूरत विधवा बहनोंकी है, उतनी ही विद्वानोंकी भी है । इसका अर्थ यह है कि हमें विद्वान् अध्यापक चाहिए। मैं कितनी देरसे अपने सम्मुख लिखा हुआ एक सूत्र वाक्य देख रहा हूँ । 'विद्या धर्मेण शोभते' । यह वाक्य सत्य है । धर्मके बिना विद्या या शिक्षाका परिणाम शून्य ही होता है; यह बात मैं भारत भ्रमण करते समय स्पष्ट देख सका हूँ । इससे प्रश्न यह उठता है कि सच्ची शिक्षा क्या है ? इसका उत्तर मैंने अनेक बार दिया है। शिक्षा किस प्रकारकी दी जाये; इसका झगड़ा पीछे तय कर लिया जायेगा । किन्तु इस समय तो हमें किसी निश्चित पद्धतिके अनुसार शिक्षा देनी चाहिए और उसमें धर्मके तत्त्वका समावेश करना चाहिए। धर्म विचारका नहीं, आचरणका विषय है । यह भी भलीभाँति ध्यानमें रखना चाहिए कि वह भाषाका विषय भी नहीं है। शिक्षा तो शिक्षक अपने आचरणसे ही देता है। ऐसे शिक्षक गुजरातको स्वयं ही पैदा करने चाहिए। उनको ढूंढ़ने बाहर जाना तो लज्जाजनक है ।

यहाँ यह शिकायत की जाती है कि अहमदाबाद में वणिक-बुद्धि बहुत है, किन्तु मुझे इससे दुःख नहीं होता। अलबत्ता वणिक-बुद्धिके साथ-साथ साहस, ज्ञान और सेवा अर्थात् क्षत्रिय, ब्राह्मण और शूद्र-बुद्धि होनी चाहिए। देशके लिए सही अर्थोंमें धन देनेवाला भी वणिक ही है । फिर शुद्ध वणिक तो अपने व्यापारको देशहित के लिए समर्पित कर देता है; उसे अपना व्यापार इसी भावनासे चलाना चाहिए । और देशहितकी भावना शुद्ध धार्मिक भावनाके बिना नहीं आती। जिस समभावके सम्बन्धमें