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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

'गीता' में शिक्षा दी गई है उसका अर्थ में तो यही करता हूँ कि हमारे आसपास जो दुखी मनुष्य दिखाई दें हमें उनके दुःख दूर करनेके लिए अपना तन, मन और धन उत्सर्गकर देना चाहिए।

गुजरात ऐसा प्रान्त है जहाँ हम कोई भी संस्था आदि खोलनेका प्रयोग कर सकते हैं। मेरी ईश्वरसे आज यही प्रार्थना है, इस संस्थाने जो काम करनेका बीड़ा उठाया है। वह ऐसे सद्कार्यों में शिरोमणि सिद्ध हो तथा ऐसे ही अन्य और कार्य गुजरातके दूसरे स्थानोंपर भी शुरू किये जायें।

मेरी यह विशेष इच्छा है कि इस संस्था तथा ऐसी अनेक संस्थाओंके कार्योंके लिए गुजरातके विद्वानों और शिक्षित समुदायकी सेवाओंका उपयोग किया जाना चाहिए । गुजरातके वणिक-वृत्ति रखनेवाले सज्जन भी अपने संचित धनका उपयोग अच्छे उद्देश्योंके लिए करें, यह भी वांछनीय है ।

जो विद्यार्थी यहाँ अध्ययन कर रहे हैं, उनसे मेरा यही कहना है कि आपको जैसी शिक्षा मिल रही है, आप उसके पात्र बनें। आप जब गृहस्थ बनें, तब आप अपनी शिक्षासे अपने परिवार और देशका गौरव बढ़ायें ।

जो विधवा बहनें इस आश्रमका लाभ उठा रही हैं उन्हें तो अपना तन और उपार्जित ज्ञान भी देश-सेवाके निमित्त अर्पित कर देना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
गुजराती, १३-७-१९१९


३७५. सत्याग्रहियों को हिदायतें

प्रकाशनार्थ नहीं

बम्बई
जून ३०, १९१९

सत्याग्रहियोंके लिए हिदायतें
सत्याग्रही सभाकी समिति द्वारा १५ जून, १९१९ को पारित प्रस्तावकी रूसे
(गुजरातीसे अनूदित )[१]

(१) चूँकि सत्याग्रहियोंका यह विश्वास है या होना चाहिए कि सविनय अवज्ञा करने के लिए सबसे ज्यादा योग्य वे ही हैं जो क्रोध, असत्य और दुर्भाव या द्वेषसे मुक्त हों और चूंकि इस दृष्टिसे मैं अपनेको सत्याग्रहियोंमें सबसे ज्यादा योग्य मानता हूँ इसलिए मैंने निश्चय किया है कि सविनय अवज्ञा करनेवाला सबसे पहला सत्याग्रही मैं ही होऊँगा ।

 
  1. मूल गुजराती पाठ उपलब्ध नहीं है ।