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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
तक कि धार्मिक आवश्यकता है। इस प्रचार कार्य में हमें दोनों चीजोंको समान महत्त्व देना चाहिए - हमें लोगोंके सामने उनकी स्वीकृतिके लिए स्वदेशीसे सम्बन्धित प्रतिज्ञाएँ रखनी चाहिए और साथ ही सूती कपड़ेके नये उत्पादनके लिए भी उद्योग करना चाहिए। सूती कपड़ेका यह नया उत्पादन हम मुख्यतः हाथ-कताई और हाथ-बुनाईको प्रोत्साहन देकर करायें। यदि फिलहाल इसमें कुछ नुकसान होता दिखे तो उसकी परवाह न की जाये ।
(ग) हिन्दू-मुस्लिम एकताका प्रचार किया जाये -सार्वजनिक भाषणों के द्वारा नहीं बल्कि दया और सेवाके ठोस कार्योंके द्वारा । हिन्दू लोग मुसलमानोंकी सेवा करें और मुसलमान हिन्दुओंकी । मुसलमान यह चाहते हैं कि टर्की एक सम्पूर्ण प्रभुता सम्पन्न मुस्लिम राज्यके रूपमें कायम रहे तथा खिलाफतकी संस्था और उनके धार्मिक स्थानोंके प्रति उनकी भावनाओंका पूरा-पूरा आदर किया जाये । चूँकि हिन्दू-मुस्लिम एकताके लिए दोनोंको एक-दूसरेकी सहायता करनी है अतः यह स्वाभाविक ही है कि हिन्दू उनके इन उचित दावोंके सम्बन्धमें मुसलमानोंको अपना हार्दिक समर्थन प्रदान करेंगे ।
(घ) सभाएँ की जायें और उनमें रौलट कानून रद करने तथा एक स्वतन्त्र और निष्पक्ष जाँच समितिकी नियुक्तिकी माँग करते हुए प्रस्ताव पास किये जायें। इस जाँच-समितिको पंजाब में हुए उपद्रवोंके कारणोंकी तथा फौजी शासनकी जाँच करनेका और फौजी अदालत द्वारा दी गई सजाओंको बदलनेका अधिकार होना चाहिए। ऐसे ही प्रस्ताव बिना किसी जाँच-पड़ताल के बाबू कालीनाथ रायकी मुक्तिके लिए और श्री हॉर्निमैनके खिलाफ जारी किये गये निर्वासनके आदेशको रद्द करानेके लिए भी पास किये जायें ।

(७) अनुच्छेद ३में व्यक्त की गई आशाके अनुसार यदि एक माहतक पूरी शान्ति रहती है और इस बातका निश्चय हो जाता है कि लोगोंने सत्याग्रहके सिद्धान्तको हृदयंगम कर लिया है तो हम मानेंगे कि सविनय अवज्ञा पुनः शुरू करनेका समय आ पहुँचा है। अलबत्ता यदि इस बीचमें रौलट-कानून रद्द कर दिया जाये तब यह सवाल नहीं उठता ।

(८) सविनय अवज्ञा उक्त परिस्थितिमें उन लोगोंके द्वारा की जायेगी जो अनुच्छेद १५ में नियुक्त नेताओं द्वारा निर्वाचित किये जायें। लेकिन मेरी सलाह है कि किसी एक जगहसे एक ही समयमें दो से ज्यादा व्यक्ति सविनय अवज्ञा न करें और यह भी कि सब स्थानोंमें सविनय अवज्ञाका यह आन्दोलन एक ही साथ न छेड़ा जाये । पहले उसे एक या दो स्थानों में ही शुरू किया जाये और लोकमानसपर उसका क्या प्रभाव होता है, यह देखा जाये। उसके बाद ही दूसरे स्थानोंमें शुरू किया जाये ।

(९) किन कानूनोंकी सविनय अवज्ञा की जाये - इस बातकी सलाह देनेका काम बहुत मुश्किल है । देशकी आजकी हालतमें, जब कि यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता कि लोगों में सविनय अवज्ञाकी भावनाको पूरी तरह हृदयंगम कर लिया है और अविनय अवज्ञाकी भावना एकदम निःशेष हो गई हैं, मैं नमक-कर और भूमिकर जैसे माल-वसूलीसे सम्बन्धित कानूनोंका और जंगल महकमेके कानूनों का उल्लंघन