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सत्याग्रहियोंको हिदायतें

बचानेके लिए - चाहे वे लोग अंग्रेज हों या भारतीय-अपने प्राणतक उत्सर्ग कर दे । इतना ही खतरा उठाकर वह धन-सम्पत्तिको क्षति पहुँचाना भी रोकेगा और अगर उसे यह लगे कि निर्दोष लोगोंपर गोलियाँ चलाई जा रही हैं तो वह खुद गोली खानेके लिए भी सामने आ जाये ।

( १७ ) इस प्रान्तके भीतर या बाहर, जहाँ कहीं भी ऐसे सत्याग्रही हों जो योग्यता अथवा आत्म-विश्वासके अभाव में या अन्य किसी कारणसे अपने-अपने स्थानोंमें रहने में असमर्थ हों, वहाँ उन्हें इस बातकी पूरी छूट है कि वे बम्बई या अन्य किसी क्रियाशील केन्द्र में जाकर फिलहाल वहाँके नेताके निर्देशन में काम करें - वैसे इस बात के लिए बम्बई जानेको प्राथमिकता देनी चाहिए ।

(१८) उपर्युक्त निर्देश सामान्य मार्ग-दर्शनके लिए दिये गये हैं, लेकिन जरूरत पड़नेपर प्रत्येक नेता इन निर्देशोंसे हटकर चलनेको स्वतन्त्र है, लेकिन तब इसकी जिम्मेदारी स्वयं उसपर होगी। इस सम्बन्धमें अनुच्छेद ११ पढ़ लिया जाये ।

(१९) कार्यरूपमें सत्याग्रह कुछ अर्थों में शस्त्र युद्ध जैसा ही है । उदाहरणार्थ, अनुशासन सम्बन्धी नियम सत्याग्रही (आध्यात्मिक) लड़ाई और हथियारवाली लड़ाई, दोनोंमें बिलकुल समान रूपसे लागू होते हैं। अतएव, सत्याग्रहियोंसे चुपचाप, कारण आदि जाननेकी कोई कोशिश किये बिना, अपने नेताके निर्देशोंका पालन करनेकी अपेक्षा की जाती है। उसे पहले निर्देशोंका पालन करना चाहिए और फिर वह चाहे तो कार्य-विशेषके औचित्यके सम्बन्धमें नेतासे जिज्ञासा करे, लेकिन शस्त्र युद्धके विपरीत, बहुत महत्त्वपूर्ण सवालोंके सम्बन्धमें सत्याग्रही अन्तिम निर्णयकी स्वतन्त्रता अवश्य रखता है । अतः ऐसे बड़े मतभेद हो जानेपर एक सच्चे सत्याग्रहीकी हैसियतसे वह यह मानते हुए कि निर्णयकी इस स्वतन्त्रताका अधिकार नेताको भी है, बिना किसी नाराजगी के उसके हाथों में अपना त्यागपत्र रख देगा । लेकिन ध्यान रहे कि अधिकांशतः मतभेद महत्त्वपूर्ण सवालोंपर न होकर सर्वथा महत्त्वहीन सवालोंपर ही हुआ करते हैं । अतः सत्याग्रही ऐसी भूल न कर बैठे कि वह शैतानकी आवाजको अन्तरात्माकी आवाज समझकर जो बात बिल्कुल महत्त्वहीन है उसे अनावश्यक महत्त्व दे दे और इस प्रकार मतभेदको आमन्त्रित करे । मेरा अनुभव तो यह है कि जिसने नौ सौ निन्यानवे बातों में आज्ञा-पालन किया हो उसीको हजारवीं बात शायद ऐसी लग सकती है जिसमें सचमुच मतभेदकी गुंजाइश हो । उसके लिए तो सबका हित, सबका मत पहले है, स्वयं उसका हित, उसका मत बादमें ।

मो० क० गांधी

मुद्रित अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ६६६२) से ।