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पत्र : प्रोफेसर जेवन्सको

आर्थिक पहलूपर आपकी बातसे में सहमत नहीं हूँ । इंग्लैंड और हिन्दुस्तानकी तुलनामें कोई तुक नहीं है । इंग्लैंड साधन-सम्पन्न है और हिन्दुस्तान दरिद्र । इस लड़ाईके दरमियान थोड़े-से लोगोंने रुपया कमाया होगा, किन्तु आम जनताका क्या हाल है ? मेरा खेड़ा और चम्पारनमें उनसे घनिष्ठ सम्पर्क हुआ। उनके पास कुछ नहीं है । जो कभी खुशहाल और ताकतवर थे, खेड़ामें सरकारकी हदसे ज्यादा मांगोंने उन लोगोंको कंगाल बना डाला; और चम्पारन में तो बागान-मालिकोंने खून ही चूस लिया है । आप जब नमक करमें वृद्धिकी बात करते हैं तो मैं काँप उठता हूँ। अगर आप यह जान लें कि इस करके कारण लोगोंकी क्या दशा हो रही है, तो खुद आप ही कहेंगे कि 'और कुछ भी क्यों न करें यह कर तो तत्काल हटा लिया जाना चाहिए।' करके अधिक होनेका कष्ट उतना नहीं है जितना इस बातका है कि नमक के एकाधिकारने कृत्रिम ढंगसे नमककी कीमत बढ़ा रखी है और गरीब लोगोंको वाजिब कीमतपर नमक मिलना मुहाल हो गया है। नमक उनके लिए पानी और हवाके बराबर ही जरूरी चीज है ।

इस टिप्पणीको प्रकाशित करनेके सम्बन्धमें मेरी यह राय है कि इसे प्रकाशित नहीं करना चाहिए। सुधारकोंको सरकारपर विश्वास नहीं है । उनका खयाल है कि आज भी वह लोगोंके साथ ईमानदारीका व्यवहार नहीं कर रही है । यह एक विचित्र परिस्थिति है । हमारा आपपर विश्वास नहीं है और फिर भी हमें आपकी जरूरत है । इससे यह जाहिर होता है कि लोगोंको अपने साथ किये गये अन्यायका भान है, किन्तु वे उसका इलाज करनेमें बिलकुल असमर्थ हैं। राष्ट्र गुलामीकी जंजीरमें पूरी तरह जकड़ा हुआ है। अंग्रेजोंने जान-बूझकर ऐसा करना न भी सोचा हो, लेकिन वे इरादतन भी इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकते थे। में इंग्लैंडसे चिपका हुआ हूँ, इसका कारण इतना ही है कि मैं मानता हूँ कि वह दिलका बुरा नहीं है और मैं यह भी मानता हूँ कि हिन्दुस्तान दुनियाको अपना सन्देश इंग्लैंडके द्वारा अधिक अच्छी तरह दे सकेगा। दूसरी तरफ हिन्दुस्तानको निःशस्त्र बनानेका इंग्लैंडका कृत्य, उसकी दम्भपूर्ण और हमको बिलकुल अलग रखनेकी सैनिक-नीति और हिन्दुस्तान के धन और उसकी कलाका अंग्रेजोंके व्यापारिक लोभकी वेदीपर बलिदान,-- इस सबको मैं इतना बुरा मानता हूँ कि यदि मुझमें उपर्युक्त श्रद्धा न होती, तो मैं कभीका विद्रोही बन गया होता ।

मेरी इच्छा आपको लम्बा पत्र लिखनेकी नहीं थी, परन्तु मेरी कलम रोके नहीं रुकी ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

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