पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/४८

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१७. पत्र : बी० जी० हॉनिमैनको[१]

[ नडियाद ]
अगस्त १२, १९१८

आपका आज्ञा-पत्र मिला। वह आठ तारीखका लिखा हुआ है, फिर भी मिला कल। मेरे खयालसे कामके अत्यधिक दबावके इस समयमें डाक- विभागकी ऐसी अनियमितताएँ हमें सह लेनी पड़ेंगी। सचमुच ही मुझपर तो सैनिक भरतीका भूत सवार हो गया है। मैं दूसरा न कुछ करता हूँ, न सोचता हूँ, और न कभी दूसरी चीजकी बात करता हूँ। और इसलिए फौजी भरतीके सिवा किसी अन्य समारोहमें अध्यक्ष-पद लेनेके योग्य नहीं हूँ । क्या इस विचारसे आप मुझे क्षमा नहीं कर देंगे ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

१८. पत्र : रसिकमणिको[२]

[ नडियाद ]
अगस्त १२, १९१८

[ प्रिय बहन, ]

आपने मेरी धर्मपत्नीके नाम जो पत्र भेजा है उसे मैं कल ही पढ़ सका हूँ । इसलिए आपको जवाब देनेमें थोड़ी देर हो गई है, क्षमा करना । यद्यपि हम दोनों स्वत- न्त्र हैं और समान अधिकारोंका उपभोग करनेवाले हैं, फिर भी सुभीतेके लिए हमने अपने क्षेत्र बाँट लिये हैं । और फिर, जब हमारा विवाह हुआ, तब तो मेरी धर्मपत्नीको कुछ भी लिखना पढ़ना नहीं आता था । मैंने उसे बड़ी मेहनतसे थोड़ा-सा पढ़ाया; फिर भी कई कारणोंसे तसल्लीबख्श नहीं पढ़ा सका । इसलिए आपका प्रस्ताव स्वीकार नहीं

  1. गांधीजीने यह पत्र हॉर्निमैनके उस पत्रके उत्तर में लिखा था, जिसमें उनसे मानव-दया सम्मेलन (ह्यूमैनिटेरियन कॉन्फ्रेंस ) का सभापति बननेका अनुरोध किया गया था। हॉर्निमैन बॉम्बे क्रॉनिकलके सम्पादक थे ।
  2. हिन्दू स्त्री-मण्डलकी मंत्री । उन्होंने कस्तूरबाको मण्डलके वार्षिक उत्सव और दादाभाई नौरोजीकी वर्षगाँठ समारोहकी अध्यक्षता करनेके लिए निमंत्रण दिया था । यह पत्र उसीके उत्तर में लिखा गया था।