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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

थी । मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि अब भी आप इस सम्बन्धमें आलस्य छोड़कर अपना कर्त्तव्य निभायें।

यह हुई एक बात और यह ठीक ही है। मगर अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मेरी प्रवृत्तियोंके लिए कतिपय मित्र मुझे कुछ पैसा देते रहते हैं और उससे खर्च निभ जाता है। लेकिन आपने अकारण ही इतने दिनों तक श्रीमती पोलकको दी जानेवाली रकम मेरे पास नहीं भेजी, क्या यह आपको अनुचित नहीं लगता ?

दक्षिण आफ्रिकासे सम्बन्धित कामोंपर कुछ रकम में पहले ही खर्च कर चुका हूँ । आज उन्हें एक लम्बा तार भेजना चाहता हूँ । इसपर जो खर्च आयेगा उसे आपने उठानेके लिए कहा है, लेकिन आपकी लापरवाहीसे मैं घबरा गया हूँ। जिस खर्चकी रकम साम्राज्यीय नागरिक संघ (इम्पीरियल सिटिजनशिप एसोसिएशन) की ओरसे ही मिलनी चाहिए, उसके लिए मैं दूसरी जगहसे भिक्षा कैसे मागूं ? इसलिए यदि आपको उचित जान पड़े कि एसोसिएशनकी ओरसे पैसा दिया जाना चाहिए, तो इस खर्चके लिए आपको मुझे १,००० रुपया भेजना जरूरी है। मैं इस रकमका हिसाब दूँगा । काफी तार जाने हैं।

आपका,
मोहनदास गांधी

गुजराती पत्र (एस० एन० ६४८४) की फोटो नकलसे ।


३८५. पत्र : अखबारोंको दक्षिण आफ्रिकी प्रश्नपर[१]

[ बम्बई
जुलाई ३, १९१९][२]

सेवामें
सम्पादक
'बॉम्बे क्रॉनिकल'
महोदय,

'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने यह स्पष्ट करनेमें कि यद्यपि हमारे बीच, यानी अंग्रेजों और भारतीयोंके बीच, बड़े गहरे मतभेद हैं, फिर भी कुछ ऐसी समान बातें भी हैं जिनके सम्बन्धमें दोनों मिल-जुलकर काम कर सकते हैं, मार्गदर्शन किया है। दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंका प्रश्न एक ऐसी ही बात है । हम लाख व्यस्त रहें लेकिन हमें इस प्रश्नको कभी भूलना नहीं चाहिए, भूलनेकी हिम्मत ही नहीं कर सकते ।

 
  1. यह ४-७-१९१९ के न्यू इंडिया, ५-७-१९१९ के यंग इंडिया और ७-७-१९१९ के हिन्दूमें भी प्रकाशित हुआ था ।
  2. एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडियाने इसे ३ जुलाईको बम्बई से प्रकाशनार्थ जारी किया था ।