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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उल्लिखित विधेयक कानून बन जाता है तो संक्षेपमें, स्थिति यह होगी कि भारतीय ट्रान्सवालमें व्यापार नहीं कर सकेंगे और न अचल सम्पत्ति ही रख सकेंगे। हालांकि अबतक वे कानूनन इन दोनों अधिकारोंका उपभोग करते रहे हैं। यह १९१४ के समझौतेका स्पष्ट और प्रत्यक्ष उल्लंघन है - उस समझौतेका उल्लंघन जिसमें भारत सरकार यदि एक पक्ष नहीं तो साक्षी तो थी ही। हमारी सरकार उसमें एक पक्ष हो या न हो, लेकिन क्या वह एक क्षणको भी यह बरदाश्त कर सकती है कि भारतीयोंके राजनीतिक अधिकार नहीं, बल्कि आर्थिक और भौतिक अधिकार उनसे छीन लिये जायें ? प्रवासको रोक देना या उसपर प्रतिबन्ध लगाना एक बात है और जिन प्रवासियोंको कानूनी तौरपर यहाँ स्वीकार कर लिया गया है उन्हें ईमानदारी और सम्मान से जीविका कमानेके अधिकारसे वंचित कर देना दूसरी । मैं जानता हूँ कि आप इस दिशा में प्रयत्न करेंगे और जल्दी करेंगे। हो सकता है, अबतक विधेयक सभी स्थितियोंसे गुजर भी चुका हो। मुझे भरोसा है कि आप तार करेंगे और पता लगायेंगे ।

आशा है, स्थान- परिवर्तनसे आपको लाभ हुआ होगा ।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी (एस० एन० ६४८४ वी) की फोटो नकलसे ।


३८७. पत्र : आर० बी० यूबैंकको

बम्बई
जुलाई ३, १९१९

प्रिय श्री यूबैंक,[१]

बहुत दिनोंसे आपको लिखनेकी सोच रहा हूँ, लेकिन बीच-बीचमें कुछ-न-कुछ ऐसा होता रहा कि लिख न सका ।

स्वदेशीके सम्बन्धमें इस प्रान्तमें जो प्रचार चल रहा है, उसको आप शायद ध्यानसे देखते रहे होंगे। साथमें स्वदेशीके नियम और प्रतिज्ञाएँ भेज रहा हूँ। क्या आप इस आन्दोलनमें दिलचस्पी ले सकेंगे ?

इस देशमें किसी उपयोगी कार्यके अभाव में कृषक वर्गके लोग लगभग आधे बरस बेकार ही रह जाते हैं; इसके अलावा ऐसे हजारों लाखों स्त्री-पुरुष हैं जिनके पास काफी समय है, लेकिन जो लाभदायक और इज्जतका कोई काम न करना चाहते हैं और न करेंगे। मेरी इच्छा इन लोगोंके बीच हाथसे कातने और बुननेके कामका प्रचार करनेकी है। अगर आपको यह विचार पसन्द हो और आपका सहयोग मिल

 
  1. बम्बईकी सहकारी समितियों के पंजीयक ।