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१९
पत्र : फूलचन्द शाहको

किया जा सकता। ऐसा नहीं लगता, मेरी धर्मपत्नी कुर्सीपर बैठकर भाषण पढ़ दे । वह अपना भाषण खुद तैयार कर ही नहीं सकती। उसे आपकी प्रवृत्तियोंके बारेमें कोई ज्ञान नहीं है जिससे वह जबानी भी कुछ समझा सके। इसलिए लाचार होकर हम दोनों आप सब बहनोंसे क्षमा चाहते हैं ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[ गुजरातीसे ]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

१९. पत्र : फूलचन्द शाहको

[ नडियाद ]
अगस्त १२, १९१८

भाईश्री फूलचन्द,

कल हमने बड़ी महत्त्वपूर्ण बातें कीं, और यदि एक भी मनुष्य आग्रहपूर्वक मेरे सुझावोंपर अमल करे, तो आप आश्रमके सम्बन्धमें जिस स्थितिकी कामना करते हैं तथा जो बिलकुल ठीक भी है, वैसी स्थितिमें हम तुरन्त ही पहुँच जायें। इस समय ऐसे मनुष्य आप ही हैं । [ कृपया ] तुरन्त सभायें आयोजित करके निर्णय कर लें ।

मैंने कल पौने छः बजे तक समझदारीसे काम लिया और स्वास्थ्यकी पूँजी इकट्ठी की ; किन्तु पौने छः बजे काँपते-काँपते उपवास तोड़ दिया और यह महादुःख मोल ले लिया । खानेमें भी संयमका पालन नहीं किया इसलिए चावलकी लपसी खा ली । अगर सिर्फ शाकका रसा ही पिया होता, तो जो दुस्सह परिणाम निकला, वह तो हरगिज न निकलता । आज मुझमें उठने या चलनेकी भी शक्ति नहीं है। लगभग घिसटते घिसटते पाखाने जाना पड़ता है और वहाँ ऐसा तीखा दर्द उठता है कि चीखनेको जी चाहता है । इतना कष्ट सहते हुए भी मुझे बहुत खुशी हो रही है। मुझे [ अपनी भूलका ] बहुत जल्दी और उचित दण्ड मिला है; यह अनुभव कैसा होता है उसका भी पूरा चित्र मेरे सामने है। मुझे विश्वास है कि पौने छः बजे मेरा दर्द शान्त हो जायेगा । मैंने भूलसे खाना खाया, इसलिए जिस वक्त खाना खाया, उससे चौबीस घंटे तक की सजा कोई भारी सजा नहीं मानी जा सकती । और फिर इतनी कम सजा भी इसलिए है क्योंकि मैंने आज उपवास किया है । मेरी चिन्ता करनेकी कोई जरूरत नहीं है । मैं यह मानता हूँ कि मैं कल कष्टसे तो बिलकुल मुक्त हो जाऊँगा और अगर मैंने खाने में असावधानी न बरती तो मैं तीन-चार दिनोंमें पहले जैसा स्वस्थ हो जाऊँगा ।

मोहनदास के वन्देमातरम्

[ गुजरातीसे ]

महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४