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३९४. सत्याग्रहियोंका कर्त्तव्य

नडियाद
जुलाई ६, १९१९

ऊपर दिया गया शीर्षक स्वयं श्री गांधीने पिछले रविवारको नडियादमें आयोजित एक सभामें किये गये अपने भाषणके लिए चुना था । सभाकी अध्यक्षता नडियाद नगरपालिकाके अध्यक्ष गोकुलदास डी० तलाटीने की। कोई दो-तीन हजार लोग इकट्ठे हुए थे । श्री गांधी भाषणका सारांश नीचे दिया जा रहा है, जिसे उन्होंने खुद ही संशोधित किया है :

श्री गांधीने कहा कि आम तौरसे सारे खेड़ा जिलेके लोगोंपर और खास तौरसे नडियादके लोगोंपर मेरा कुछ विशेष अधिकार है। मैं आप लोगोंके बीच बहुत अधिक दिनोंतक रह चुका हूँ और आपके स्नेह और कृपाके रससे शराबोर रहा हूँ । मैंने अपने सबसे बड़े प्रयोग खेड़ामें ही किये। अमन और कानूनको पसन्द करनेवाले लोगोंके लिए लगान देना बन्द कर देना कोई छोटी बात नहीं है । मैंने आपको वैसा करनेकी सलाह देकर अपने सिर बहुत बड़ी जिम्मेदारी ले ली थी, लेकिन प्रयोगके व्यावहारिक रूपको देखनेपर, सबने देख लिया कि वैसी सलाह देना गलत नहीं था । सम्बन्धित अधिकारियोंने भी यह स्वीकार किया कि आप लोगोंने अपनी शिकायतोंको अत्यन्त शान्तिपूर्ण, व्यवस्थित और शोभनीय ढंगसे सामने रखा। सविनय अवज्ञाकी इसी उदाहरणीय और सफल पद्धतिसे प्रेरित होकर में पिछले अप्रैल माहमें कुछ भ्रममें पड़ गया। और फिर बादमें, उस समय मैंने उस भूलको विंध्याचल के आकार की तरह बड़ी भूल माना; किन्तु आज अधिक अनुभव होनेके बाद मैं उसे हिमालयके समान विशाल एक भयंकर भूल मानने लगा हूँ। फिर भी खेड़ाके लोगोंसे मेरी अपेक्षाका आधार सिर्फ लगान-सम्बन्धी लड़ाई ही नहीं, बल्कि फौजी भरतीका अभियान भी है।

श्री गांधीने आगे कहा :

पहला संघर्ष तो लोगोंकी पसन्दका था; किन्तु दीर्घकाल से शस्त्रास्त्र चलानेका कोई प्रशिक्षण न मिलने और सरकारके प्रति वास्तविक सद्भाव न होनेके कारण आपके मनमें फौज में भरती होने के लिए कोई आकर्षण या रुचि नहीं थी। फिर भी, मैं मानता हूँ कि आप लोग बड़े ही शानदार ढंगसे आगे आये, और मुझे पूरा विश्वास है कि अगर युद्ध और अधिक दिनोंतक चलता तो खेड़ाने स्वेच्छासे मध्यम-वर्गके लोगों में से १,००० जवान दे दिये होते । अतः मैंने आशा की थी, और आज भी यही आशा करता हूँ कि राष्ट्रीय पुनरुत्थानमें खेड़ा कोई मामूली भूमिका नहीं निभायेगा और मातृभूमिकी मैं जो सेवा करूँगा वह आप लोगों या अगर अधिक ठीक कहूँ तो गुजरातके लोगोंके माध्यमसे ही करूँगा । और इसी खयालसे कि मुझे शायद जल्दी ही सविनय अवज्ञा शुरू