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सत्याग्रहियोंका कर्त्तव्य

करनी पड़े मैंने आज आपके सामने सत्याग्रहियों के कर्त्तव्यपर बोलना तय किया है। सत्याग्रहके अर्थको ठीकसे ग्रहण किये बिना इस कर्त्तव्यको समझना असम्भव ही है । इसकी परिभाषा तो मैं पहले ही कर चुका हूँ लेकिन कभी-कभी सिर्फ परिभाषासे सही अर्थका बोध नहीं हो पाता। दुर्भाग्यवश, आम लोग सत्याग्रहका सीधा-सादा अर्थ सविनय अवज्ञा ही करते हैं। कुछ लोग इसका अर्थ अविनयपूर्ण अवज्ञा भी न लगा लेते हों, तो इसे गनीमत समझिए। जैसा कि आप जानते हैं, यह दूसरे ढंगकी अवज्ञा सत्याग्रहसे ठीक उलटी चीज है । सविनय अवज्ञा, निस्सन्देह सत्याग्रहकी एक महत्त्वपूर्ण शाखा है, लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि हर हालत में यह सत्याग्रहका मुख्य अंग ही हुआ करती है। उदाहरणके लिए, आज रौलट विधेयकोंके सवालपर सविनय अवज्ञाका महत्त्व गौण हो गया है। चूँकि राजनीतिक क्षेत्रमें बड़े पैमानेपर सत्याग्रहका प्रयोग पहले- पहल किया जा रहा है, इसलिए इसे एक परीक्षणात्मक स्थिति ही कहेंगे । और इसलिए इस परीक्षणमें मुझे बराबर नये-नये अनुभव प्राप्त हो रहे हैं। मैंने लोगोंपर सविनय अवज्ञाको एकाएक हावी कर देनेकी कोशिश करके जो भूल की वह मुझे हिमालय- जैसी विशाल इसीलिए लगी कि मैंने देखा कि सविनय अवज्ञा करनेका सामर्थ्य और अधिकार केवल उसी व्यक्तिको है जिसने यह सीखा हो कि जिस राज्य में वह रहता है उसके कानूनोंका स्वेच्छासे और जानबूझकर कैसे पालन किया जाये । ऐसे कानूनों का स्वेच्छासे हजार बार पालन कर लेनेपर ही चन्द कानूनोंकी सविनय अवज्ञा करनेका योग्य अवसर आ सकता है। स्वेच्छासे किसी कानूनके पालनके लिए यह भी जरूरी नहीं है कि वह कानून अच्छा ही हो। ऐसे बहुतसे अन्यायपूर्ण कानून हैं, जिनका अच्छे नागरिक पालन करते हैं, बशर्ते ये कानून उनके आत्म-सम्मान या उनकी नैतिकताको ठेस न पहुँचाते हों । और जब मैं पीछे मुड़कर अपने जीवनपर दृष्टिपात करता हूँ तो मुझे ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलता जब मैंने किसी कानूनका, चाहे वह समाजका हो या राज्यका, सजाके भयके कारण पालन किया हो। मैंने समाज और राज्य दोनोंके बुरे कानूनों का पालन किया है और सिर्फ इसी भावनासे कि यह बात मैं जिस राज्य या समाजमें रहता हूँ, उसके और मेरे दोनोंके लिए हितकर है। मुझे लगता है कि नियमित और अनुशासित ढंगसे वर्षोंतक ऐसा करनेके बाद मेरे लिए समाजका कानून तोड़नेकी घड़ी १८८८ में इंग्लैंड जानेके रूपमें आई; और राज्यका कानून तोड़नेका अवसर दक्षिण आफ्रिकामें ट्रान्सवाल सरकार द्वारा एशियाई पंजीयन अधिनियम पास किये जानेपर आया । इसलिए मैं इसी निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि यदि सविनय अवज्ञा पुनः प्रारम्भ करनी है तो पहले केवल में ही ऐसा करूँगा, क्योंकि मैं इसके लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हूँ। और फिलहाल साथी सत्याग्रहियोंका काम है कि वे, मैंने अभी सविनय अवज्ञाके जिस प्रथम अपरिहार्य तत्त्वका उल्लेख किया है, उस तत्त्वको ग्रहण करें। मैंने जो हिदायतें तैयार की हैं, उनमें सुझाया है कि मेरे जेल चले जानेके बाद कमसे कम एक महीने तक कोई भी सविनय अवज्ञा न करे । और उसके बाद भी एक-दो चुने हुए सत्याग्रही उसी अर्थ में जो मैने ऊपर बताया है - ही सविनय अवज्ञा करें और सो भी तभी जब यह देख लिया गया हो कि मेरे जेल जानेके बाद जिन्हें हम सत्याग्रही कहते हैं उन्होंने या उनके साथ काम करनेवाले लोगोंने कोई हिंसात्मक कार्य नहीं किया