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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है इसके बाद शेष सत्याग्रहियोंका कर्त्तव्य स्वयं पूर्ण शान्ति और व्यवस्था बनाये रखना और ऐसा प्रयत्न करना होगा जिससे दूसरे भी वही रास्ता अपनायें । इसलिए आपको ध्यान रखना होगा कि अगर में सविनय अवज्ञा करूँ तो उसके बाद कोई हड़ताल या सार्वजनिक सभा न की जाये, और न कोई ऐसा प्रदर्शन ही किया जाये जिससे उत्तेजना फैले। मुझे पूरा विश्वास है कि अगर मेरे जेल जानेके बाद पूर्ण शान्ति रखी गई तो केवल इसी एक बातके बलपर रौलट विधेयक मात्र समाप्त हो जायेंगे । लेकिन, सम्भव है कि सरकार अपनी जिदपर अड़ी रहे । उस हालतमें, सत्याग्रहियोंको, मैं जो शर्तें बता चुका हूँ, उनके अनुसार सविनय अवज्ञा करनेकी पूरी स्वतंत्रता होगी; और वे तबतक ऐसा करते रह सकेंगे जबतक एक-एक सत्याग्रही अपना खरापन सिद्ध नहीं कर देता ।

इस बीच जो थोड़ा-बहुत समय गुजरेगा उसके लिए मैंने हिदायतोंमें कुछ रचनात्मक कार्योंकी योजना रखी है। इस सम्बन्धमें मैंने जो एक बात सुझाई है, वह है स्वदेशीका आन्दोलन बिल्कुल धार्मिक और सच्ची भावनासे भरी हुई स्वदेशी, जिसमें बहिष्कारके विचारका लेश भी न हो; ऐसी स्वदेशी जिसमें वाइसरायसे लेकर तुच्छसे तुच्छ रैयत-तक भाग ले सके। अगर कमसे कम आँका जाये तो भारतकी आबादीका ८० प्रतिशत हिस्सा कृषक है । इस हिसाब से किसानोंकी संख्या २४ करोड़ आती है । यह सर्वविदित है कि आधे वर्षतक आबादीका यह हिस्सा लगभग बेकार ही रहता है या बहुत सँभालकर कहें तो कह सकते हैं कि इसके पास ऐसा बहुतसा समय बच रहता है, जिसका उपयोग ये किन्हीं उपयोगी कार्योंमें कर सकते हैं। अगर इस आबादीके लिए कोई अच्छा-खासा और लाभदायक धंधा आसानीसे सुलभ करा दिया जाये तो हमारी एक बड़ी आर्थिक समस्याका हल निकल आये। मेरी नम्र सम्मतिमें हाथसे कताई करना एक ऐसा ही काम है । इसे हर आदमी आसानीसे सीख सकता है, और मेरे विचारमें, यह राष्ट्रके खाली समयका उपयोग करनेका सबसे उपयुक्त तरीका है । स्वदेशीका सम्बन्ध मुख्यतः वस्तुओंका उत्पादन करने, उन्हें बनाने से है । हम जितना अधिक सामान तैयार करेंगे, देशमें उतना ही अधिक स्वदेशीका प्रसार होगा। प्रतिज्ञाएँ तो उत्पादकोंको एक प्रेरणा और प्रोत्साहन देनेके लिए तैयार की गई हैं। इस कार्यके लिए बहुत बड़ी संख्या में स्वयंसेवकोंकी जरूरत है, जिनकी एकमात्र आवश्यक योग्यता है, पूरी- पूरी ईमानदारी और देश-प्रेम । मैं तो चाहूँगा कि भारतका एक-एक पुरुष, एक-एक स्त्री पूरे मन-प्राणसे इस काममें जुट जाये। मुझे इस बात में कोई सन्देह नहीं है कि हम इस प्रकार आकर्षकसे आकर्षक रूप-रंगके, अच्छेसे अच्छे कपड़े बुननेकी लुप्त- प्राय कलामें फिरसे इतनी जल्दी पहले जैसा जीवन फूँक देंगे कि लोगोंको आश्चर्य होगा ।

एक और विषय रह जाता है, जिसपर मैं कुछ कहना चाहता हूँ। पिछले अप्रैल महीने में अहमदाबाद और वीरमगाँवमें उन्मत्त भीड़ने जो कुछ किया उसके परिणाम तो भयंकर सिद्ध हुए ही, लेकिन अगर आप सम्भावनाओं पर विचार करें तो आप समझ जायेंगे कि खेड़ामें की गई कार्रवाइयाँ अपेक्षाकृत रूपसे और । भी भयंकर सिद्ध हो सकती थीं । मेरा मतलब है तार काटने और रेलकी पटरियाँ