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३९५. भाषण : नडियादकी महिला सभा में स्वदेशीपर

[ जुलाई ६, १९१९]

बहनो,

आज यहाँ नडियादकी बहुत-सी बहनोंके आनेसे मैं खुश हुआ । आप सब बहनें यहाँ आईं, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ। मैं जितनी जोरसे बोल सकूँगा उतनी जोरसे बोलूँगा । किन्तु यदि आप शान्त न रहीं तो मैं बोलना जारी नहीं रख सकूंगा। मैं भाषण करने नहीं, बल्कि आपको समझाने आया हूँ। मुझे जो बात कहनी है उसके यद्यपि आर्थिक और राजनैतिक पहलू भी हैं; लेकिन इस समय मैं धार्मिक दृष्टिकोण से उसकी बात करूँगा अर्थात् आपके सामने यह रखना चाहता हूँ कि स्वदेशीका पालन धार्मिक दृष्टिसे करनेका क्या अर्थ है । मैं भाषण दे डालूँ और आप उसे न समझें तो वह व्यर्थ ही होगा। यह भी स्पष्ट है कि आप जबतक ध्यानपूर्वक न सुनें तबतक आप उसे समझ नहीं सकतीं ।

हिन्दुस्तानमें एक समय ऐसा था और हम मानते थे कि हमें हिन्दुओंके घरोंके अलावा, इतना ही नहीं यदि वे भी सजातीय न हों तो, दूसरी जगह पानी नहीं पीना चाहिए । हरिद्वारके मेलेमें अगर ब्राह्मणोंके पास पानी होता तो मुसलमान ब्राह्मणोंसे पानी ले लेते थे लेकिन मुसलमान द्वारा लाये गये पानीको कोई हिन्दू हाथ नहीं लगाता था। सख्त धूपमें भी प्यास सहन कर लेते थे, मगर वे ऐसे विश्वास और तदनुकूल आचरणको अपना धर्म मानते थे और इसलिए वे मुसलमानके हाथका पानी नहीं पीते थे ।

जिस स्थानपर रामचन्द्रजीका जन्म हुआ और जहाँ सीताजी खेली — उस बिहार—प्रदेशमें और उसके आसपासके प्रान्तोंमें में रह आया हूँ। वहाँ ऐसे बहुत से व्यक्ति मौजूद हैं जो गाड़ीमें सफर करते समय कुछ नहीं खाते, उपवास रखते हैं। ट्रेन में कुछ न खायें, ऐसी धार्मिक भावना मूल्यवान है । इसमें संयम है। संयम अर्थात अमुक वस्तुका समझ—बूझकर त्याग करना । इसमें किसी भी व्यक्तिपर, किसी भी व्यक्ति द्वारा दबाव नहीं डाला जाता ।

इससे आत्मबल दृढ़तर होता है। खाने योग्य वस्तुको न खाने में, पीने लायक चीजको न पीनेमें संयम है। मगर किसीका निरादर करें तो हम पापमें पड़ते हैं । खानेकी वस्तु मिले या न मिले, [ मैं नहीं खाऊँगा ] —इस कारण नहीं, बल्कि अमुक व्यक्ति के हाथका बना हुआ नहीं खाना चाहिए इस—मान्यतासे कोई न खाये तो मैं मानता हूँ कि उसमें अधर्म[१] है ।

प्राचीनकालमें स्त्री और पुरुष हाथ के बने हुए वस्त्र पहनते थे । शास्त्रियोंने शास्त्रसे मुझे जो अवतरण भेजे हैं उनमें मैं देखता हूँ कि विवाह के समय पत्नीको

 
  1. मूल रिपोर्ट में यहाँ 'धर्म' शब्द है, जो स्पष्टतः छापेकी भूल है ।