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भाषण : नडियादकी महिला सभा में स्वदेशीपर

आप अपने लगानसे अधिक कमा लें । सम्भव है आप तीन वर्षके लगानके बराबर एक ही वर्षमें पैदा कर लें। यह सीधा हिसाब तो छोटी—छोटी लड़कियाँ भी समझ सकती हैं।

यदि आप अपने बच्चोंके लिए सुन्दर भविष्य चाहती हैं तो आप उनके लिए विरासत में यह विश्वास उनके पास छोड़ जायें कि बाहरसे अपनी जरूरतकी चीजोंको मँगवाना अधर्म है। उन्हें ऐसा लगे कि वस्त्र तो यहींके बने हुए पहनने चाहिए।

वस्त्रोंमें आप अंग्रेजोंका अनुकरण न करें। यदि पति उन जैसे वस्त्र पसन्द करके ले आयें और कहें कि जंगली बनो तो आपको उनसे कहना चाहिए कि हमें ऐसे पति—प्रेमकी आवश्यकता नहीं है। अन्य वस्त्रोंकी तरह आपकी साड़ी भी यहींकी होनी चाहिए। यह प्रश्न उठेगा, ऐसी महीन साड़ियाँ यहाँ कैसे बनें। यदि आप सचमुच ऐसी साड़ी चाहती हैं तो वैसी साड़ी भी बन सकेगी। एक बहन मेरे पास आई—वह पैसा माँगती थी । मैंने पूछा कि तुम्हारा लहँगा काहेका बना हुआ है ? उसने बताया, मेरे बिस्तरकी चादरका [ बना हुआ ] है । कमसे कम वह इतनी समझदार तो थी ।

आप नडियाद में बना हुआ वस्त्र पहनें। उसे ज्यादा भारी न समझें। मोटा हो तो उसमें सुधार करानेकी कोशिश कीजिए। आप बीमार बच्चेकी दवा करेंगी उसे छोड़ नहीं देंगी। यह बात भी आपको उसी तरह स्वीकार करनी चाहिए और बादमें वैद्य रूपी बुनकरसे उसमें सुधार करवाना चाहिए। हमारे बुनकर जो वस्त्र बुनें वही वस्त्र आपको पहनने चाहिए। आपके पास जो वस्त्र हैं भले उनका त्याग न करें, उन्हें पहन डालें । लेकिन भविष्यमें आप जो नये वस्त्र लें वे स्वदेशी होने चाहिए। स्वदेशीका उपयोग कीजिए और उसे बढ़ावा दीजिए । स्वदेशी साड़ियाँ बनवाइये। अपने पतियोंको मनाइये; एक दूसरे की मददकरके स्वतन्त्र होइए। यदि आप बहनें इस बातको बराबर समझकर उसपर अमल करें तो दो वर्षमें आप स्वयं कहेंगी कि गांधीने ठीक कहा था ।

परसों भीम—एकादशी है। इस दिन हम सब चतुर्मासका व्रत लेते हैं । इस एकादशीको आप क्या व्रत लेंगी। यही कि आप जो कपड़े भारतमें नहीं बने हैं, उन्हें नहीं पहनेंगी, ऐसे जो कपड़े आपके पास हैं उन्हें आप पहन डालेंगी और नये विदेशी वस्त्र नहीं खरीदेंगी; आपको चतुर्मास व्रत ऐसी प्रतिज्ञाके साथ रखना चाहिए। आप स्वयं नडियादके वस्त्र पहननेकी प्रतिज्ञा लें, मुझे इतनेसे ही सन्तोष नहीं होगा । आप दूसरी बहनोंको भी यह समझाइये, उन्हें नडियादके वस्त्र पहनने के लिए कहिए। यदि सभी ऐसी प्रतिज्ञा ले लें तो हिन्दुस्तान कितना खुशहाल हो जाये; मैं इसका अन्दाज भी नहीं लगा सकता; और सो भी एक दो वर्ष में ही ।

आप सब बहनें सूत कातना सीखें। यह काम आसान है। मैंने काता है, इसलिए मैं जानता हूँ । मेरे इस ओर गंगाबहन और उस ओर अनसूयाबेन बैठी हैं, इन्हें भी इसका अनुभव है ।

कुछ बहनें जैसा करती हैं, आप सभी वैसा करें। आपके पास दो—तीन घंटे फाजिल समय रहता है । परन्तु आप व्यर्थ ही उसे मन्दिरोंमें बैठकर नष्ट कर देती हैं। मन्दिरमें माला जपना धर्म हो सकता है; लेकिन आजकल तो वस्त्रका उत्पादन ही सच्ची भक्ति है । परोपकार की भावनासे खेत जोतकर जनताको देना और हिन्दुस्तानके हितको ध्यानमें