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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रखकर घरमें बैठकर सूत कातना, वह भी पैसे के लिए नहीं, सबसे बड़ा धर्म है । जो थोड़ा बहुत भी ऐसा करते हैं वे उस अंशतक धर्मका पालन करते हैं। पैसा लेकर कातनेवाले भी धर्म—पालन करते हैं। मालदार स्त्रियोंको हर रोज दो—तीन घंटे सूत कातना चाहिए और उसे यहाँ भण्डारमें पहुँचा देना चाहिए । यहाँ जिन भाइयोंने यह साहसका कार्य उठाया है। उसमें यह सूत उपहारस्वरूप दे देना चाहिए। इससे कपड़ा बहुत सस्ता हो जायेगा । जब यहाँ सस्ता हो जाये तो खेड़ा जिलेको अपना सूत दे दीजिये । लेकिन पहले नडियादमें खपाएँ, उसके बाद ही बाहर भेजिए । ईश्वरने जैसे आपको नडियादमें पैदा किया उसी प्रकार आपका नडियादके लोगोंकी सेवा करना हिन्दुस्तानकी सेवा है। आपको ऐसा [काम ] करना चाहिए जिससे नडियाद विदेशों या अन्य भागोंपर भारस्वरूप न हो जाये । यह आपका धर्म है ।

इसलिए मेरी प्रार्थना है कि धनवान स्त्रियाँ मुफ्त सूत कातकर दें। जो कोई पैसा लेकर कातेगा उसे [ सूतके] सेरके तीन आने दिये जायेंगे। जो पैसा मिल जाये वही उपयोगी होगा। इससे आप अपनी जरूरतकी चीजें ले सकती हैं। आपको दवा आदिकी जरूरत हो तो वह भी खरीदी जा सकती है। आप जितना श्रम करें उतना लाभ है । यह रोजगार सुन्दर है। मेहनत कम है, यन्त्र साधारण हैं । चरखेकी कीमत दो रुपये आठ आने है । इससे [ यह धन्धा शुरू करना ] सस्ता पड़ता है। यदि आप इतने पैसे न खर्च कर सकें तो आपको यहाँकी योजनाके अधीन चरखा दिया जायेगा। हर महीने चार आने काटने से मूल्य अदा हो जायेगा और यह ठीक भी कहलायेगा ।

यह स्वदेशी [ धर्म] महान् धर्म है। इससे ही हिन्दुस्तान खुशहाल होगा। बाकी सब उपाय थोथे हैं। यही स्वराज्य है । जहाँ धर्म है वहाँ अन्य सब बातें उसमें आ जाती हैं, यह 'गीता' का उपदेश है। धार्मिकतापूर्वक स्वदेशीका पालन करनेमें ही हमारा उद्धार है। हमें करोड़पति नहीं बनना है । वह तो अन्यायसे सम्भव होता है। तीस करोड़की आबादी करोड़पति नहीं हो सकती। लेकिन निःसन्देह सुखके साथ सभी रह सकते हैं। मैं आज आपको यही बात समझानेके लिए आया था ।

आपने ध्यानपूर्वक मेरा भाषण सुना, इसके लिए मैं आपका आभार मानता हूँ । यदि आप इसे समझ पायें, तो हृदयंगम कर लीजिएगा। जो इसे हृदयंगम कर लें, ऐसी बहनें आगे आयें, यह मेरी इच्छा है। दिनके चौबीस घंटोंमें से आपको चरखेके पीछे थोड़ासा समय अवश्य देना चाहिए। अड़ोसी पड़ोसी तथा अपने पतियोंको चरखा कातनेके लिए कहिए। लोगोंके घरोंमें जैसे चक्की होती है, वैसे चरखा भी होना चाहिए। ऐसा हो तो नडियादमें जरूरतका कपड़ा बनने लगे । भुखमरी समाप्त हो । समय बितानेके लिए स्वदेशी ही [ सच्चा ] धर्म है । स्वदेशीका उपयोग कीजिए, उसका उत्पादन कीजिए। फिलहाल जितना चाहिए उतना कपड़ा नहीं है। अगर हम स्वदेशीका पालन करें, [ सूत कातें, बुने] तो हो सकता है । सब स्त्री—पुरुष इसे अपनायें तो ११ दिनमें विदेशी वस्त्र अदृश्य हो सकते हैं। बात मनसे उत्पन्न हो यह आसान रास्ता है । अभी बाहरसे आता है, इससे हमें ७५ प्रतिशत तो तैयार करना ही पड़ेगा । सब महिलाएँ इस धर्मको अंगीकार करें तो पन्द्रह दिनमें ही यह समझ में आयेगा कि उद्धार समीप आ गया ।