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२०. पत्र : मगनलाल गांधीको

[ नडियाद
अगस्त १४, १९१८ को या उसके आसपास ][१]


चि० मगनलाल,

अगस्त १४, १९१८ को या उसके आसपास ][२]

सत्याग्रह सर्वव्यापक[३] है, मुझे इस सिद्धान्तका अनुभव मिल रहा है । पत्रमें मेरी तबीयतका समाचार है । देवदासने भूल की है इससे तुम सब चिन्तामें पड़ गये होगे । मैं सख्त इलाज कर रहा हूँ और प्रभुकी कृपा हुई तो जल्द ही अच्छा हो जाऊँगा । आज लगभग उपवास करते हुए तीसरा दिन है और उससे दर्द कम होता जा रहा है । मैं जानता हूँ, तुम्हें पल-भरके लिए भी फुरसत नहीं है । स्वास्थ्यका ध्यान रखते हुए सब कार्य करना । घी और दूधका प्रयोग करनेमें संकोच न करना । किसीसे भी हाल-चाल लिखने और अन्य समाचार भेजते रहनेके लिए कह देना । यदि अन्य लोग मजदुरीमें व्यस्त हों तो सन्तोकसे कहना । राधा, केशु, कृष्णा भी लिख सकते हैं । यदि गिरधारीको लिखनेकी छूट मिले, तो वह लिखे । मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५७६७) से । सौजन्य : राधाबेन चौधरी बापूके आशीर्वाद २१. साम्प्राज्यीय सम्मेलनके प्रस्ताव अगस्त १५, १९१८ 'इंडियन रिव्यू ' के वर्तमान अंकमें देनेके लिए श्री जी० ए० नटेसनको भेजा गया महात्मा गांधीका निम्नलिखित लेख हमें भी प्रकाशनके लिए मिला है :

उपनिवेशोंमें हमारे प्रवासी भाइयोंकी हैसियतपर साम्राज्यीय सम्मेलनका प्रस्ताव[४] ऊपरसे पढ़ने में तो अच्छा लगता है किन्तु यह अत्यन्त धोखेमें डालनेवाला है । हम इस

  1. पत्र उपवासके तीसरे दिन लिखा गया था । यह उपवास गांधीजीने सम्भवतः अगस्त १२, १९१८ को पेचिशके रोगले ग्रसित हो जानेपर आरम्भ किया था ।
  2. पत्र उपवासके तीसरे दिन लिखा गया था । यह उपवास गांधीजीने सम्भवतः अगस्त १२, १९१८ को पेचिशके रोगले ग्रसित हो जानेपर आरम्भ किया था ।
  3. अर्थात् सार्वदेशिक और सार्वकालिक।
  4. सम्मेलनकी कार्रवाईका निम्नलिखित सार भारत-मन्त्रीने वाइसरायको तार द्वारा भेजा था : 'सम्मेलनकी १५वीं बैठक २५ जुलाईको हुईं। सबसे पहले भारत तथा उपनिवेशोंके बीच व्यवहारकी • पारस्परिक नीतिपर विचार किया गया । गत वर्ष सम्मेलनने पारस्परिकताका सिद्धांत स्वीकार करते हुए जो प्रस्ताव पास किया था उसके संदर्भ में बहसके बाद इस सम्बन्धमें दूसरा प्रस्ताव पास किया गया...