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लाला राधाकृष्णका मुकदमा

कम उनके विचारसे,[१] बिना किसी कारणके गोलियाँ चलाई गईं।" आरोपपत्रसे रेखांकित शब्दोंको निकालकर लेखकके अर्थका अनर्थ कर दिया गया है । तीसरे उद्धरणसे भी उस अंशको निकाल दिया गया है जिसके कारण उसका ऐसा अर्थ हो जाता है जो अभियुक्तके पक्षमें जाता है । इस तीसरे उद्धरणके अन्तमें ये शब्द आये हैं: "लोगोंने ईंट-पत्थर तब फेंके, जब अधिकारी इस दिशामें कदम उठा चुके थे।" जिस लेखसे उक्त वाक्य लिया गया है उसमें इसी वाक्यसे सम्बद्ध दो वाक्य ऐसे भी थे जो इसके स्वरको मर्यादित करते हैं : "लेकिन यह सम्भव है कि पुलिस अधिकारियोंने गोली चलाई, उसके पहले ही इस जबरदस्त भीड़में से किसी व्यक्तिने उनपर ईंट पत्थर फेंके हों[२] इसे सत्य भी मान लिया जाये तो हमारा कहना है कि अधिकारियोंकी बुद्धिमानी और चतुराई इसीमें थी कि हुल्लड़बाजीको रोकनेके लिए वे गोलियाँ चलानेके बदले कोई और उपाय अपनाते ।" यहाँ हम फिर देखते हैं कि रेखांकित अंश सहित ये दो वाक्य उद्धरणके पूरे अर्थको बदल देते हैं । यदि ऐसे किसी तथ्यका जिक्र प्रतिवादी द्वारा छोड़ दिया जाता तो इसे सत्यको छिपानेका प्रयास माना जाता और वह अदालतमें अपनी बातकी सुनवाईके अधिकारसे वंचित हो जाता; लेकिन जब वादीने ऐसा किया तो इसे स्वीकार कर लिया गया । किन्तु वास्तव में यह प्रतिवादी द्वारा तथ्यको छिपाने के प्रयत्नकी तुलना में बहुत अधिक खतरनाक बात है। सरकार जान—बूझकर या अनजाने किसी महत्त्वपूर्ण तथ्यको पेश न करे तो परिणाम यह होगा कि वह किसीको अन्यायपूर्ण ढंगसे सजा दिला सकती है। जैसा कि लगता है, उसने इस मामलेमें किया है ।

आरोपके अन्तिम अनुच्छेदमें एक अक्षम्य वक्रोक्ति है :

अभियुक्तने बहुत सारे राजद्रोहात्मक और उत्तेजनात्मक लेख प्रकाशित किये हैं, लेकिन सरकारने तब भी नियम २५ के अन्तर्गत ही कार्रवाई करना पसन्द किया है ।

अभियुक्त ने बहुत—से "राजद्रोहात्मक और उत्तेजनात्मक" लेख लिखे, इस उक्तिका उद्देश्य तो मात्र प्रतिवादीके पक्षको कमजोर करना ही हो सकता था । इतना ढीला और इतना विवादास्पद अभियोगपत्र मैंने कभी नहीं देखा । यदि धृष्टता न मानी जाये तो कहूँ कि मेरे विचारसे समुचित विधिके अनुसार गठित किसी भी न्यायालयमें, इसे अमान्य कर दिया जाता और अभियुक्तको बचाव पेश किये बिना ही मुक्त कर दिया जाता ।

और दुःखके साथ कहना पड़ता है कि इस निर्णयकी भी हमारे मनपर वैसी ही छाप पड़ती है जैसी अभियोगपत्रकी पड़ती है—यानी कि यह पूर्वग्रहग्रस्त है और इसमें जल्दबाजी की गई है। निर्णय में कहा गया है : "वादीने यह भी सिद्ध कर दिया है कि इनमें से प्रत्येक कथन झूठा है।" आशा है, ऊपर मैंने जो कुछ कहा है उससे स्पष्ट होगा कि अभियोगपत्रमें दिये गये उक्त दो कथनोंको तो झूठा साबित किया नहीं जा सकता, क्योंकि उनका उल्लेख उन्हें उनके "सन्दर्भसे विच्छिन्न करके और अपूर्ण रूपमें किया गया है।"[३] इन अपूर्ण कथनोंको झूठा सिद्ध करनेके लिए चाहे जितने प्रमाण दिये जाते, उनके कारण अभियुक्तकी हानि नहीं होने दी जा सकती । अब केवल दो कथन और रह जाते हैं,

 
  1. मूलमें ये शब्द रेखांकित हैं ।
  2. मूलमें यह वाक्य रेखांकित है ।
  3. मूलमें ये शब्द रेखांकित हैं ।