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पत्र : पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नरके निजी सचिवको

किस आधारपर सच माना है । और अन्तमें, वादीने यह भी सिद्ध नहीं किया कि इसका उद्देश्य भय या आतंक पैदा करना था, या यह कि इससे जनता में भय या आतंक पैदा होनेकी सम्भावना थी, और हमें पूरा विश्वास है कि इन झूठे वक्तव्योंको प्रचारित करनेसे सचमुच जनतामें भय और आतंक फैला । इस सम्बन्धमें लाला राधाकृष्ण कहते हैं, “वादी पक्षके गवाह इस बातका कोई निश्चित उदाहरण पेश नहीं कर पाये कि सम्बन्धित लेखोंके कारण ऐसा कोई आतंक फैला ।"

निर्णयमें लाला राधाकृष्णके पूर्व—चरित्रकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है और न इस तथ्यका ही खयाल किया गया है कि यद्यपि उन्होंने जो कुछ लिखा था उसपर खेद प्रकाशका कोई कारण नहीं था, फिर भी उन्होंने अपने अदालती बयानमें यह कहा कि यदि अनजाने ही कोई अतिशयोक्ति हो गई हो तो, उसके लिए मुझे खेद है । इसी प्रकार इस महत्त्वपूर्ण तथ्यका भी कोई खयाल नहीं किया गया कि मृत व्यक्तियोंकी संख्याके सम्बन्धमें जो गलती — यदि इसे गलती कहा जाये तो — हुई थी उसे उन्होंने सरकारी वक्तव्य के प्रकाशित होते ही सुधार दिया और 'सिविल ऐंड मिलिट्री गज़ट' में दिया गया विवरण भी प्रकाशित कर दिया । यह तो साफ अन्याय जान पड़ता है । ऐसा सुना है कि अपनी रिहाईके लिए लाला राधाकृष्णने जो अर्जी दी है उसपर पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदय अब भी विचार कर रहे हैं। आशा है, सारे भारतवर्षकी जनता और अखबार न्यायकी इस प्रार्थनाको अपने समर्थनका बल देंगे और वह समर्थन व्यर्थ नहीं जायेगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १२-७-१९१९

३९८. पत्र : पंजाबके लेफ्टिनेंट गवर्नरके निजी सचिवको

[ जुलाई १२, १९१९]

सेवामें

निजी सचिव
माननीय लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदय

लाहौर
प्रिय महोदय,

इस पत्रके साथ माननीय लेफ्टिनेंट गवर्नर महोदयकी सेवामें 'यंग इंडिया'[१] की वह प्रति भेज रहा हूँ, जिसमें 'प्रताप' के सम्पादक लाला राधाकृष्णका मामला दिया गया है । मुझे मालूम हुआ है कि यह मामला फिलहाल माननीय महोदयके विचाराधीन है। क्या मैं आशा करूँ कि लाला राधाकृष्णकी सजा माफ कर दी जायेगी ?

आपका विश्वस्त,

अंग्रेजी (एस० एन० ६७६५) की फोटो- नकलसे ।

 
  1. तात्पर्य जुलाई १२, १९१९ के अंकसे है ।