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भाषण : स्वदेशीपर

कारखाने में काम करना आदि पर गुजारा करना पड़ता है और इसमें भी ज्यादातर मर्दोको ही काम मिल पाता है । तब स्त्रियाँ क्या करती हैं ? या तो वे बेकार रहती हैं या वे ऐसे काममें लगी रहती हैं, जिससे कोई लाभ नहीं होता। समस्त भारतकी हालत ऐसी ही है। सर दिनशा वाछाने अनुमान लगाया है कि लड़ाईके दिनोंमें लोगोंको लड़ाईसे पहले के पाँच वर्षोंको अपेक्षा पहनने और ओढ़नेके लिए कम कपड़ा मिला है। कपड़े की यह जो कमी रहती है, उसको पूरा करनेके लिए क्या हमें नई मिलें खुलनेकी राह देखनी चाहिए ? अगर हम इस कठिनाईसे छुटकारा पानेके लिए मिलोंके भरोसे बैठे रहे तो उसमें तो सालों लग जायेंगे। हमारी कपड़े की मांग की पूर्तिमें जो भी कमी रह जाती है उसको जल्दी पूरा करनेका कारगर तरीका सिर्फ स्वदेशी है । सर विलियम हंटरने[१]अनुमान लगाया है कि हमारे देशमें दस प्रतिशत लोगोंको दिनमें केवल एक वक्तका भोजन भी मुश्किलसे ही मिल पाता है । मैंने चम्पारनमें किसानोंकी जो हालत देखी है, उससे सर इंटरके इस अनुमानकी पुष्टि होती है। मैं कह सकता हूँ कि चम्पारनमें ज्यादातर किसानोंको बहुत कम खाकर सन्तोष करना पड़ता है । मेरी पत्नी स्वयं चम्पारन जिलेके गाँवमें घूमी है; और अपने इस अनुभवके आधारपर उन्होंने मुझे यह दुःखद तथ्य बताया है कि वहाँ अनेक स्त्रियोंके पास तन ढकनेतक के लिए काफी कपड़ा नहीं है, और कुछके पास तो जो मैला कपड़ा वे पहने होती हैं, उसके अलावा और कोई कपड़ा ही नहीं होता कि वे नहाकर उसे बदल सकें; जिसका नतीजा यह होता है कि वे लगातार कई दिनों तक नहा नहीं पातीं और उनके अपने तनके मैले कपड़ेको धोना भी उनके लिए कठिन होता है। हजारों किसान जाड़के दिनोंमें तापने के लिए गोबरका अपना कीमती खाद जला देते हैं। इसका कारण यह है कि उनके पास गर्म कपड़ा खरीदने लायक पैसे नहीं होते। और इस समस्त दुरवस्थाका कारण क्या है ? डेढ़ सौ साल पहले वे स्वयं कपास पैदा करते थे, उससे सूत कातते थे और अपने लिए कपड़ा बना लेते थे । किन्तु आज उन्हें विदेशी बाजारोंपर निर्भर रहना पड़ता है । अतीत कालमें हमारी दस्तकारीका विनाश कैसे हुआ यह बताना मेरे लिए कष्टकर होगा और यह सब सुनकर आपको भी बड़ी वेदना होगी। हमारा भविष्य आप विद्यार्थियोंपर ही निर्भर है; अतः आपका कर्त्तव्य है कि किसानोंकी अवस्था की जाँच करें और उसे सुधारनेके उपाय सोचें एवं अपने जीवनसे उनके सम्मुख उदाहरण उपस्थित करें। आप चाहें तो थोड़े ही दिनोंमें कातना और बुनना सीख सकते हैं, और फिर आप गाँव-गाँव घूमकर किसानोंके बीच स्वदेशीका प्रचार कर सकते हैं तथा उन्हें यह बता सकते हैं कि वे किस प्रकार अपने खाली वक्तका उपयोग सूत कातने और कपड़ा बुननेमें करके।

१५-३०
 
  1. (१८४० - १९००); भारतमें २५ वर्ष तक राजकीय सेवा की। इंडियन एम्पायर तथा अनेक पुस्तकें लिखीं । १४ खंडोंमें इम्पीरियल गैज़ेटियर ऑफ इंडियाका संकलन किया। वाइसरायकी परिषद्के सदस्य (१८८१-८७) । अवकाश प्राप्त करनेके बाद कांग्रेसकी ब्रिटिश कमेटीके सदस्य बने और १८९० से भारतीय मामलोंपर लंदन टाइम्समें लिखते रहे ।