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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भुखमरी और दुष्कालोंका सामना कर सकते हैं। यदि किसी देशके किसानोंको सालमें छः महीने बेकार रहना पड़ता हो, तो यह सचमुच, उसके लिए बड़ी चिन्ताकी बात है ।

इसके बाद श्री गांधीने जनताके सामने प्रस्तुत अपनी तीन प्रतिज्ञाओं को समझाया और कहा कि सबसे विशुद्ध स्वदेशी तो हाथ कते सूतसे करघेपर बुने गये कपड़ेके उपयोगमें ही निहित है। कपड़ोंके मशीनोंसे बने रहने की बात छोड़ दें तो भी इसमें शक नहीं है कि मैं जो कपड़ा पहने हूँ वह आपके कपड़ेसे ज्यादा कलापूर्ण है । कलाका मतलब तो ऐसी वस्तु बनाना है जिसकी हूबहू नकल नहीं की जा सके, जिसपर किसी आदर्शकी छाप लगी हो, संक्षेपमें, जिसमें कलाकारको आत्मा बसी हुई हो। मशीनोंसे बने कपड़ेमें आत्माका सौरभ नहीं होता। और हाथका बना कपड़ा ज्यादा मजबूत होता है, इसमें तो कोई शक ही नहीं है। किन्तु यदि आप मेरे कला-सम्बन्धी विचारोंसे सहमत न भी हों तो आप देशी मिलोंके कपड़े का सहारा ले सकते हैं, और किसान अपने घरोंमें अपने लिए स्वयं ही कात और बुन सकते हैं।

यदि हम इस नष्ट कलाके जीर्णोद्वार, मातृभूमिकी सेवा और किसानोंकी रक्षाकी दृष्टिसे सोचें तो हम देखेंगे कि स्वदेशी ऐसी चीज है कि उसके बिना इनमें से एक भी बातका होना सम्भव नहीं है। कुछ समय तक तो आपको मोटे सूतके बने कपड़ेसे ही सन्तोष करना होगा, किन्तु इसमें जो बड़े—बड़े प्रश्न आते हैं उनको देखते हुए आपका यह त्याग बहुत कम कहलाएगा।

उन्होंने विशेष जोर देकर कहा कि मैं हाथकरघोंको शक्तिचालित करघोंकी होड़ में ला रहा हूँ । उद्देश्य यह नहीं है कि ये शक्तिचालित करघोंका स्थान पूरी तरह ले लें; बल्कि यह है कि हाथकरघे शक्तिचालित करघोंकी कमी पूरी करें। मेरे कहनेका आशय यह है कि हमारी मिलें चाहे जितनी उन्नति कर लें, उससे किसानोंकी हालत कदापि नहीं सुधर सकती। उनकी आर्थिक मुक्ति तो गृह उद्योगोंको कताई और बुनाईको — पुनरुज्जीवित करनेसे ही सम्भव है । मुझे आशा है कि आप इस समस्त प्रश्नपर अपने प्राध्यापकोंके साथ विचार-विमर्श करेंगे और आप भी तथा प्राध्यापकगण भी जैसा उचित जान पड़ेगा, वैसे मार्गका अवलम्बन करके धार्मिक भावनासे स्वदेशीका समर्थन करेंगे ।

प्रिसिपल परांजपेने श्री गांधीको धन्यवाद देते हुए कहा कि श्री गांधीने अपना भाषण हिन्दीमें दिया है; अतः में उसे पूरी तरह नहीं समझ सका हूँ । मुझे उनके कथनका सारमात्र मिल सका है। किन्तु मैं बाकीके बारेमें अनुमान लगा सकता हूँ। उन्होंने आगे कहा कि मेरे खयालसे श्री गांधीने जो जिहाद छेड़ा है वह अव्यावहारिक है, और साथ ही उन्होंने ऐसा माननेके कुछ कारण भी बताए। फिर उन्होंने कहा कि डेढ़ सौ साल पहले हम सम्भव है अपना कपड़ा स्वयं ही बनाते होंगे। इसी प्रकार हम बहुत पुरानी किस्मकी बैलगाड़ियों पर बैठकर दूर-दूरकी मंजिलें तय करते थे, और हमारे कारवाँ भी इसी पुराने ढंगले देशका माल बाहर ले जाते थे और बाहरका माल यहाँ देशमें लाते थे । फिर यहाँ रेलें आ गई और उन्होंने इन गाड़ीवानोंके धन्धेको नष्ट कर दिया। क्या श्री गांधी