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भाषण : पूनाकी सभा में स्वदेशीपर

यह चाहते हैं कि अब रेल—व्यवस्थाको समाप्त करके उसके स्थानपर फिर वाणिज्य—व्यवसायके उसी आदिम साधनको कायम कर दिया जाये ? मेरे खयालसे काल—प्रवाहको बदलने और किसी आर्थिक समस्याका भावनात्मक हल ढूँढनेका प्रयास व्यर्थ है । इसी प्रकार यह कहना भी असंगत होगा कि पुराने जमानेके लिपिकोंका स्थान ले लेनेवाले छापाखानोंको बन्द कर दिया जाये और उनकी जगह हम फिर लिपिकोंसे अपना लिखाईका काम कराने लगें। इस सम्बन्धमें अभी तो मैंने अपना विचार स्थिर नहीं किया है; किन्तु श्री गांधीके भाषणसे मेरी शंकाकी निवृत्ति नहीं होती ।[१]

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १६-७-१९१९


४०१. भाषण : पूनाकी सभा में स्वदेशीपर

जुलाई १२, १९१९

श्री गांधीने सभामें श्री खाडिलकर द्वारा अपना परिचय दिये जानेके बाद हिन्दीमें भाषण देते हुए कहा कि मैं प्रारम्भमें स्वदेशीपर राजनीतिक दृष्टिकोणसे नहीं, बल्कि आर्थिक और धार्मिक दृष्टिकोणसे विचार करना चाहता हूँ । स्वदेशीको जिस रूपमें मैं समझता हूँ उस रूपमें वह कुछ ऐसे विशेष आर्थिक और धार्मिक सिद्धान्तोंपर आधारित है जिनके अनुसार वाइसरायसे लेकर उनका चपरासी तक सभी उसे स्वीकार कर सकते है । इसके उपासकोंमें नरमदल और गरमदल—जैसा कोई भेद नहीं होता और यह ऐसा आन्दोलन है कि उसके प्रभावके अन्तर्गत सभी प्रजातियों, जातियों और धर्मो के लोगोंको लाना सम्भव है । इस प्रकार, इसमें बहिष्कारकी कोई गुंजाइश नहीं है । यह कुछ साल पहले स्वदेशीका मुख्य तत्त्व था; या यों कहें कि व्यवहारतः बहिष्कार ही स्वदेशी था । इसलिए मैं आपसे साग्रह अनुरोध करता हूँ कि आप स्वदेशीका खयाल करते वक्त अपने मस्तिष्कसे बहिष्कारकी बात बिलकुल निकाल दें ।

मुझे याद है जब दक्षिण आफ्रिकासे लौटने के कुछ दिन बाद में पूना आया था तब यहाँ मैंने भाषण[२] देते हुए कहा था कि पूना जो बात आज सोचेगा, वही बात कल सारा देश सोचेगा । मेरी राय अब भी यही है । मेरी धारणा है कि भारतका कोई भी नगर शिक्षा और त्यागवृत्तिमें पूनाका मुकाबला नहीं कर सकता, और मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यदि पूनामें मेरी स्वदेशीकी बात मान ली जाये तो मेरा आधा काम हो चुकेगा । मेरी रायमें पूनामें जो कमी है वह है केवल श्रद्धा और आत्मविश्वासकी । मेरे खयालसे पूनाके लोग अब भी यही मानते हैं कि पश्चिमके रंग में रंगे बिना हमारा

  1. अपने भाषणकी इस रिपोर्टको छापते हुए इसके आगे गांधीजीने यंग इंडियामें सम्पादकीय टिप्पणी भी दी । देखिए “आचार्य परांजपेकी आलोचनापर टिप्पणी " १६-७-१९१९ ।
  2. देखिए खण्ड १३ ।