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आचार्य परांजपेकी आलोचनापर टिप्पणी

यह समाचार दे देना। वैसे इस सबका आधार गवर्नर महोदयकी ओरसे मेरे नाम आने-वाले पत्रपर निर्भर करता है ।

आपका काम कैसा चल रहा है ? तबीयत कैसी रहती है ?

मोहनदासके वंदेमातरम्

गुजराती पत्र ( जी० एन० ३८०८) को फोटो - नकलसे ।

४०९. आचार्य परांजपेकी आलोचनापर टिप्पणी[१]

[ जुलाई १६, १९१९]

यह स्पष्ट है कि फर्ग्युसन कालेजके विद्वान् और लोकप्रिय आचार्य, जैसा कि उन्होंने स्वीकार भी किया, श्री गांधीके भाषणकी सब बातें नहीं समझ सके। जाहिर है, उन्होंने यह समझा कि श्री गांधी स्वदेशीके प्रचारमें यंत्र-सम्बन्धी अपने सुविदित विचारोंको दाखिल करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। सच तो यह है कि वे प्रयासपूर्वक इस बातसे बचकर बोले थे । उन्होंने स्वदेशीके सम्बन्धमें जो तीन प्रतिज्ञाएँ तैयार की हैं, उनमें मिलोंके बने कपड़े के उपयोगको मान्यता दी गई है। उन्होंने अपने भाषण में यह कहा था कि शहरोंके लोग मिलों के कपड़ेका इस्तेमाल केवल तभी कर सकते हैं, जब किसान लोग हाथसे मोटा कपड़ा बनायें और उसे काममें लें। गाड़ीवानों और लिपिकोंसे इन प्रश्नोंका कोई सम्बन्ध नहीं है। इन दोनों वर्गोंके लोगोंने अन्य धन्धे ढूँढ़ लिये हैं, जब कि कृषक-वर्गके लोग खासतौरसे गाँवोंकी स्त्रियाँ, घरमें काम न होनेसे बहुत-कुछ बेकार रहते हैं। श्री गांधीने हाथसे कताई और बुनाई करनेका काम उन लाखों करोड़ों लोगोंके लिए सुझाया है, जिन्हें सालका लगभग आधा समय मजबूरन बेकार रहकर बिताना पड़ता है । सर दिनशा वाछाने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' को कपड़े की कमीके बारेमें एक पत्र लिखा है और यह चेतावनी दी है कि “मिलोंमें अतिरिक्त तकुए और करघे लगानेकी कठिनाईको देखते हुए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि भारतीय मिलोंकी उत्पादन क्षमतामें बहुत अधिक वृद्धि हो जायेगी और इस प्रकार इस स्थितिसे छुटकारा मिल जायेगा ।" सर वाछाके कथनका उल्लेख करते हुए, 'मॉडर्न रिव्यू' लिखता है "क्या हाथ करघे और देशी चरखेसे जितना उत्पादन इस समय किया जाता है उससे अधिक उत्पादन करके इस दिशा में थोड़ी और सहायता नहीं दी जा सकती ? हमारा खयाल है दी जा सकती है।"

संपादक,
यंग इंडिया

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया,१६-७-१९१९
 
  1. यह १२ जुलाईको फिलॉसोफिकल क्लब के तत्वावधान में फग्र्युसन कॉलेज, पूनामें किये गये समारोह की रिपोर्ट के साथ सम्पादकीय लेखके रूपमें प्रकाशित की गई थी। इस समारोहमें गांधीजीके बोलनेके बाद आर० पी० परांजपेने अध्यक्षीय भाषणमें गांधीजीके भाषणकी आलोचना की थी। देखिए “भाषण: स्वदेशी पर", १२-७-१९१९ ।