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४१०. पत्र : मगनलाल गांधीको

बुधवार
[ जुलाई १६, १९१९][१]

चि० मगनलाल,

इस पत्रके लानेवाले भाई वेंकट कृष्णम्मा हैं । इन्हें प्रख्यात सत्याग्रही राजगोपालाचारीने भेजा है। इनका विचार मेहनत-मजदूरी करने का है। इनका कहना है कि ये हमें प्रति मास दस रुपये दे सकेंगे । वे यह भी कहते हैं कि उन्हें बरामदे में ही जगह मिल जाये तो [भी] काफी होगी और ये हर तरहका काम करनेके लिए तैयार हैं। इनकी इच्छा करघेका काम सीखनेकी है। इन्हें शारीरिक मेहनतका जो काम देना चाहो देना, और साथ ही कातनेका काम भी शुरू करवाना। यदि ये ठीक काम करेंगे तो रहेंगे; इनको माफिक न आये तो ये जा सकते हैं । इस तरह जो व्यक्ति मुझे योग्य लगेगा उसे मैं भेजता रहूँगा । उसमें तुम्हें जब कुछ असुविधा हो तो मुझे लिख देना ।

मैं शुक्रवारको गवर्नरसे मिलनेवाला हूँ । उस दिन ज्यादा ठीक पता चलेगा कि मेरी क्या स्थिति है । उम्मीद है, तुम सामलदासके लिए घरका बन्दोबस्त कर रहे होगे ।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू ० ५७७१ ) से ।
सौजन्य : राधाबेन चौधरी

४११. पत्र : ए० एच० वेस्टको

लैबर्नम रोड
गामदेवी
बम्बई
जुलाई १७, १९१९

प्रिय वेस्ट,

डर्बनसे लिखा हुआ तुम्हारा बिना तारीखका पत्र मिला, जिसमें तुमने मेरा कोई पत्र न मिलनेके कारण बहुत निराश होनेकी बात लिखी है। बात मेरी समझमें बिल्कुल ही नहीं आई। यह सच है कि मैंने तुम्हें, श्रीमती वेस्टको तथा देवीको बहुत पत्र नहीं लिखे परन्तु इतने तो जरूर लिखे हैं कि तुम लोगोंको यह अन्दाज लग जाये कि मैं तुमको कभी नहीं भूल पाता। मैंने अपने एक पत्रमें अपनी कठिनाइयोंकी चर्चा की थी और यह

  1. गवर्नरसे भेंट १९ जुलाई तक होनेवाली थी । देखिए “ पत्र : एफ० सी० ग्रिफिथको ",१८-७-१९१९ ।