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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो सकता है । बम्बईके गवर्नर महोदयने एकाधिक बार मुझे मिलनेको बुलाकर, इन मुलाकातोंके दरम्यान इस चेतावनीको दुहराया है। इस चेतावनीका खयाल करते हुए तथा दीवान बहादुर गोविन्द राघव अय्यर, सर नारायण चन्दावरकर तथा अनेक पत्र- सम्पादकोंने मुझसे सार्वजनिक रूपसे जो अनुरोध किया है उसका आदर करते हुए खूब विचार करनेके बाद फिलहाल मैंने सविनय कानून-भंग स्थगित रखनेका निश्चय किया है । यहाँ में इतना और कह दूं कि जिसे गरम दल कहा जाता है उस पक्ष के बहुत-से प्रमुख मित्रोंने भी मुझे ऐसी ही सलाह दी है; और वह इसी एक आधारपर कि जो लोग सविनय कानून-भंगके सिद्धान्तको समझ न पाये हों, उनकी ओरसे हिंसाके पुनः फूट पड़नेका उन्हें भय है। दूसरे साथी सत्याग्रहियोंके साथ परामर्श करनेके बाद जब मैं इस फैसले- पर पहुँचा कि सत्याग्रहके सविनय कानून-भंगवाले अंगको कार्यान्वित करनेका समय आ पहुँचा है, तब अपने इस निर्णयकी सूचना देते हुए मैंने वाइसराय महोदयको एक विनयपूर्ण पत्र[१]लिखा। उस पत्र में मैंने आग्रहपूर्वक निवेदन किया कि रौलट अधिनियम रद कर दिया जाये, पंजाबके अत्याचारोंकी जाँच करनेके लिए एक ऐसी निष्पक्ष और मजबूत कमेटी मुकर्रर की जाये, जिसे लोगोंको दी गई सजाओंमें परिवर्तन करनेका अधिकार हो और बाबू कालीनाथ रायको, जिनके मुकदमेके कागजातसे यह साबित किया जा सकता है कि उन्हें बेजा तौरपर सजा दी गई है, छोड़ दिया जाये। श्री रायके मामलेमें भारत- सरकारने जो फैसला [२]दिया है, उसके लिए वह बधाईकी पात्र है । यद्यपि श्री रायके साथ पूरा न्याय नहीं किया गया है, फिर भी उनकी सजामें भारी कमी कर दी गई है, इसलिए कहा जा सकता है कि उन्हें पर्याप्त न्याय मिल गया है । मुझे विश्वास दिलाया गया है कि जिस प्रकारकी जाँच कमेटीके लिए मैं आग्रह कर रहा हूँ, उसे नियुक्त करनेका विचार किया जा रहा है । सद्भावके इतने चिह्नोंके मिल जानेके बाद सरकारकी चेतावनीकी उपेक्षा करना मेरे लिए समझदारीकी बात न होगी । निःसन्देह सरकारकी सलाह स्वीकार करके मैं सविनय कानून-भंगके सच्चे स्वरूपका और अधिक प्रमाण प्रस्तुत कर रहा हूँ । सत्याग्रही सरकारको कभी कठिनाईमें नहीं डालना चाहता । वह प्रायः उसके साथ सहयोग करता है । परन्तु जब विरोध करना उसका फर्ज हो जाता है, तब नम्रतापूर्वक विरोध करनेमें वह हिचकिचाता भी नहीं है। वह अपना लक्ष्य विरोधी कदम उठानेके कुछ अनिवार्य परिणाम अपेक्षित हैं और इन परिणामोंके लिए नैतिक रूपसे वे लोग जिम्मेदार होंगे जो ऐसे कदम उठानेकी सलाह देंगे था उसे मानेंगे ।

साथ ही यह सूचित करना भी मेरा कर्तव्य है कि गवर्नर महोदय आपको यह चेतावनी भी दे देना चाहते हैं कि इस प्रदेशकी स्थितिको देखते हुए ऐसी कार्रवाईके परिणाम जन-सुरक्षाकी दृष्टिसे भयंकरतम हो सकते हैं । इसके विपरीत कोई धारणा बनाना एकदम निर्मूल कल्पना करने जैसा होगा ।

वास्ते - सरकारके राजनीतिक सचिव

"सोर्स मेटिरियल फॉर ए हिस्ट्री ऑफ द फ्रीडम मूवमेंट इन इंडिया”, खण्ड २ (१८८५-१९२०), पृष्ठ ८०१ ( बम्बई सरकार )।

  1. देखिए “ पत्र : एस० आर० हिगनेलको ", १८-६-१९१९ ।
  2. सपरिषद् गवर्नर जनरलने ६ जुलाईको कालीनाथ रायकी सजा ३ वर्षसे घटाकर ३ माह कर दी थी।