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पत्र : अखबारोंको

पक्षमें सद्भाव पैदा करके प्राप्त करता है और मानता है कि सरकारके कृत्य अन्यायपूर्ण होनेके बावजूद उसके प्रति अविचल रूपसे सद्भाव प्रदर्शित करते रहने के परिणामस्वरूप सरकार भी अन्ततोगत्वा सद्भाव प्रदर्शित करने लगेगी। इसलिए सविनय कानून-भंगको फिरसे स्थगित करना सत्याग्रहके व्यावहारिक प्रयोगके सिवा और कुछ नहीं है ।

फिर भी जबतक रौलट कानून हमारी विधान- पुस्तकको कलंकित कर रहे हैं, तब तक सविनय कानून-भंगको एक दिनके लिए भी स्थगित करना पड़े, यह मेरे लिए कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। लाहौर[१]और अमृतसरमें दी गई सजाएँ सत्याग्रहके इस विलम्बनको और भी कठिन बना देती हैं। मैंने इन मुकदमोंके फैसले सर्वथा तटस्थ वृत्तिसे पढ़े हैं और मेरे मनपर यह अमिट छाप पड़ी है कि पंजाबके अधिकांश नेताओंको पर्याप्त प्रमाणके बिना ही सजाएँ दे दी गई हैं। और यह भी कि उनकी सजाएँ अमानुषिक एवं अत्याचारपूर्ण हैं । इन फैसलोंसे ऐसा प्रमाणित होता है कि उन नेताओंको और किसी कारणसे नहीं, महज इसलिए सजाएँ दी गई हैं कि वे रौलट कानूनके विरुद्ध किये गये प्रबल आन्दोलनके साथ सम्बन्ध रखते थे । इसलिए यदि में अपनी इच्छाका अनुसरण कर सकता तो मैं उस मर्यादित स्वतन्त्रताके स्थानपर, जो भारत सरकार मुझे दिये हुए है, जेल जाना अधिक पसन्द करता । परन्तु सत्याग्रहीको बहुत-से कड़वे घूँट पीने पड़ते हैं। और सत्याग्रहका यह विलम्बन भी एक ऐसा ही कड़वा घूँट है । मेरा खयाल है कि सविनय कानून-भंग फिलहाल मुल्तवी करके देशकी, सरकारकी और पंजाबके उन नेताओंकी, जिन्हें मेरे मतानुसार अनुचित रूपसे दोषी ठहराया गया है और जिन्हें निर्दयतापूर्ण सजाएँ सुनाई गई हैं, अधिक अच्छी सेवा कर सकूँगा ।

सत्याग्रहको मुल्तवी कर देनेसे, हिंसाके फूट पड़नेकी सम्भावनाके कारण मेरे ऊपर जो जिम्मेदारी आती थी वह तो हलकी हो जाती है, किन्तु उससे सरकारकी और उन प्रसिद्ध नेताओंकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है जो मुझे उसे मुल्तवी करनेकी सलाह दे रहे थे । अब यह देखना उनका कर्त्तव्य हो जाता है कि रौलट कानून अविलम्ब रद कर दिये जायें।

मुझपर यह आरोप लगाया जाता है कि मैं जहाँ-तहाँ आग सुलगा रहा हूँ । यदि मेरे द्वारा प्रसंगानुसार छेड़ा गया सविनय कानून-भंग ही सुलगाई हुई आग है, तो रौलट कानून और उसे विधि-संहितामें बनाये रखनेका सरकारका हठ सारे हिन्दुस्तानमें हजारों जगह आग लगानेके बराबर है । सविनय कानून-भंगको बन्द करानेका एक ही मार्ग है कि सरकार रौलट कानून रद कर दे। इन कानूनोंके समर्थन में सरकारने जो कुछ प्रकाशित किया है, उसकी किसी बातसे भी इनके खिलाफ भारतीय जनता के विरोध-भावमें कोई फर्क नहीं पड़ा है।

इसलिए मैंने कानूनको जल्दी रद करानेके लिए ही सविनय कानून-भंग मुल्तवी रखा है । किन्तु यदि ये कानून साधारण उपायोंसे रद न कराये जा सकें तो उन्हें रद कराने के लिए सत्याग्रही अपने प्राणोंकी बाजी लगायेंगे । सत्याग्रह के विलम्बनका यह समय

 
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