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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सत्याग्रहियोंके लिए तो राज्यके कानूनोंके ज्ञान और स्वेच्छापूर्ण पालनकी और अधिक तालीम हासिल करनेका एक बढ़िया अवसर है । कानूनका सविनय भंग करनेका हक स्वेच्छापूर्वक कानून—पालनके कर्त्तव्यसे ही निकलता है । सत्याग्रह केवल सविनय कानून—भंगमें अथवा मुख्यतः सविनय कानून-भंगमें नहीं, दृढ़तापूर्वक सत्यका पालन करके राष्ट्रहितका पोषण करने में है । साथी सत्याग्रहियोंको में नम्रतापूर्वक सलाह देता हूँ और छोटे- बड़े सभीसे सहयोग माँगता हूँ कि वे शुद्ध स्वदेशीका प्रचार करें और हिन्दू-मुस्लिम एकता बढ़ाने में प्रयत्नशील हों । मेरे खयालसे स्वदेशी हमारे राष्ट्रके अस्तित्वके लिए आवश्यक वस्तु है । हमारे २० करोड़ किसानोंको वर्षमें ६ महीने जबरदस्ती बेकार रहना पड़ता है । उनका श्रम इतना बेकार चला जाता है, इसका विचार करनेपर कोई भी हिन्दुस्तानी या अंग्रेज स्वस्थ चित्त नहीं रह सकता। इस बेकार जानेवाली शक्तिका उपयोग शीघ्र ही और तत्काल हो सके, इसके लिए यही एक उपाय है कि स्त्रियोंको उनके चरखे और पुरुषोंको उनके करघे पुनः सौंप दिये जायें। इससे लंकाशायरका अस्वाभाविक स्वार्थं खतम हो जायेगा और जापानका भय भी न रहेगा । लंकाशायरके स्वाभाविक स्वार्थका निराकरण हो जानेसे हमारे साथ ब्रिटेनके सम्बन्ध शुद्ध हो जायेंगे और [ दोनों देशोंमें ] समानता की स्थितिकी सम्भावना पैदा हो जायेगी । जापानका भय दूर हो जानेसे भारतका और साम्राज्यका एक बड़ा संकट टल जायेगा । भारतपर व्यापारके द्वारा जापानी पंजेके विस्तारका परिणाम या तो यह होगा कि भारतकी हालत बदतर हो जायेगी या फिर भीषण युद्ध फूट निकलेगा ।

हिन्दू-मुस्लिम एकता राष्ट्र और साम्राज्य दोनोंके लिए समानरूपसे आवश्यक है । हिन्दुओं, मुसलमानों और अंग्रेजोंकी स्वेच्छापूर्ण एकता, मेरे विचारसे अभी स्थापित किये गये राष्ट्र—संघकी अपेक्षा अनन्तगुना श्रेष्ठ और विशुद्ध होगी। हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच स्थायी एकताका होना इन तीनोंकी ऐसी एकताकी शुरूआत है। खलीफा, मक्का शरीफ और इस्लामके दूसरे पवित्र स्थानोंके सम्बन्धमें मुसलमानोंकी जो बहुत न्यायपूर्ण आकांक्षाएँ हैं, उनमें समूचे दिलसे साथ देकर हिन्दू इस एकताको बहुत आगे बढ़ा सकते हैं ।

स्वदेशीके प्रचारके तथा हिन्दू-मुस्लिम एकताके कार्यके लिए संगठन—शक्ति, कार्यनिष्ठा, व्यापारमें प्रामाणिकता तथा उत्कट आत्मत्याग एवं आत्मसंयमकी शक्तिकी आवश्यकता है। इससे यह आसानीसे समझमें आ जायेगा कि यदि हम बिलकुल शुद्ध ढंगसे स्वदेशीका प्रचार करें और हिन्दू-मुस्लिम एकताको गति दें, तो रौलट कानून रद करानेके हमारे आन्दोलनपर उसका अप्रत्यक्ष किन्तु फिर भी अत्यन्त प्रबल प्रभाव पड़ेगा। इस कानूनके लिए सरकारके पास आज भी कोई उचित कारण नहीं है किन्तु तब तो उनके पास इसके लिए बिलकुल भी कारण नहीं रह जायेगा जब हम अपने व्यवहारमें ऊपर कहे हुए गुणोंका अपूर्व परिचय देंगे ।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २३-७-१९१९