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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक ही साम्राज्यीय संघके सदस्योंके प्रति मैत्रीके लिहाजसे जिससे वह प्रशासनिक रूपसे सम्बद्ध है, वह एकसे अधिक पत्नियों और उनकी सन्तानको प्रवेशकी अनुमति दे ।

उक्त समझौता दूसरे मामलोंमें हैसियतकी असमानताके प्रश्नको भी टालता है । इस प्रकार सारे दक्षिण आफ्रिकामें परवाने प्राप्त करनेमें कठिनाई, ट्रान्सवाल तथा फ्री स्टेटमें भू-सम्पत्ति रखनेपर प्रतिबन्ध और खुद संघके अन्दर फ्री स्टेटमें भारतीयोंके प्रवेशका लगभग निषेध, आम सरकारी स्कूलोंमें भारतीय बच्चोंका प्रतिषेध, ट्रान्सवाल और फ्री स्टेटमें नगरपालिका-मताधिकारका अपहरण, और दक्षिण आफ्रिका भरमें, शायद केवल केपको छोड़कर, व्यावहारिक रूपमें संघीय मताधिकारका अपहरण जैसी असमानताएँ अब भी मौजूद हैं। इसलिए साम्राज्यीय सम्मेलनका प्रस्ताव निश्चित रूपसे धोखा है । उपनिवेशों- में जरा भी हृदय परिवर्तन नहीं हुआ है तथा भारतके सम्बन्धमें साम्राज्यीय कर्त्तव्य- को भी स्वीकार नहीं किया गया। फीजीके वे अत्याचार जिनकी ओर श्री एन्ड्रयूजने जोर देते हुए ध्यान आकर्षित किया है, बताते हैं कि उन शाही उपनिवेशोंमें भी जो सीधे शाही नियन्त्रणमें हैं क्या-क्या घटित हो सकता है ।

[ अंग्रेजीसे ]
न्यू इंडिया, १५-८-१९१८
प्रिय श्री हैंडरसन,

२२.पत्र:रॉबर्ट हैंडरसनको[१]

अगस्त १७, १९१८

इस समय मैं बिस्तरपर पड़ा हूँ। मैं अपने जीवनकी सबसे बड़ी बीमारीसे गुजर रहा हूँ। और इसलिए आपके पत्रका जवाब जल्दी देनेमें असमर्थ रहा। आपके सीधे- सादे और शुद्ध दिलसे लिखे पत्रपर मैं मुग्ध हो गया। उसके लिए आपका आभार मानता हूँ। अपने भाषणोंके प्रकाशित होनेवाले विवरणोंकी भूलोंपर मैं शायद ही कभी ध्यान देता हूँ। उन्हें पढ़ने तकका मौका भी मुझे बहुत कम मिल पाता है। किन्तु चूँकि 'टाइम्स में छपे इस विवरणसे बहुत हानि होनेकी सम्भावना थी, मैंने उसमें की त्रुटियोंको सुधार देना ठीक समझा। मैंने उन्हें सुधार दिया, तो अच्छा ही हुआ[२]

  1. महादेव देसाईने इस पत्रके बारेमें अपनी डायरीमें लिखा है :"गांधीजीने महीने के शुरू में रंगरूटोंकी भरतीके बारेमें सूरतमें एक भाषण दिया था । किसोने उसका विवरण 'टाइम्स' में भेज दिया था । उसमें कुछ ऐसे वाक्य थे जो तिलक महाराजको आलोचना- जैसे लगते थे। विवरण बड़ा त्रुटिपूर्ण था। गांधीजीने इसके बारेमें 'टाइम्स'को एक कड़ा पत्र लिखा था । सूरतके एक अधिकारी श्री हैंडरसनने भारी भूल' के लिए क्षमा-याचना करते हुए गांधीजीको पत्र लिखा था ।"
  2. देखिए "पत्र : टाइम्स ऑफ इंडियाको”, १०-८-१९१८