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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनाये बिना हड़तालोंका संगठन करना हमेशासे सराहनीय और उचित माना जाता रहा है और जब उचित कामको अपराध माना जाता हो तब वह अपराध पावन कर्त्तव्य हो जाता है और उसके लिए जेल जाना, बेइज्जतीकी बात समझी जानेके बजाय ऐसी गौरवपूर्ण बात समझी जाने लगती है, जिसकी प्रत्येक नेक नागरिकको कामना करनी चाहिए । रौलट अधिनियमके खिलाफ इतना घनघोर और विकट आन्दोलन जारी रखना कि सरकार या तो उस कानूनको वापस ले ले या आन्दोलन करनेवालोंकी स्वतन्त्रता हर ले, उसका न्यूनातिन्यून कर्त्तव्य बन गया है। यदि तनावकी मौजूदा सूरतमें, मुझे हिंसाके फैल जानेका डर न होता, तो में निश्चय ही फिर हड़ताल करनेकी सलाह दे देता । इसमें सन्देह नहीं कि तनावका कारण सत्याग्रहका शुरू किया जाना नहीं है, बल्कि यह है कि जब में सोच समझकर वातावरणको शान्त करने और शान्ति स्थापित करनेके इरादेसे दिल्ली जा रहा था, और आवश्यकता होती तो लाहौर और अमृतसर भी जाता, उस समय सरकारने मुझे गिरफ्तार कर लिया। उसका यह काम हिंसाको उकसाकर उसे आमन्त्रण देनेकी मूर्खता करने के समान ही था । सरकारने डॉ० किचलू और डॉ० सत्यपालको, जो कि जनताके नेता थे, और जिनमें रौलट अधिनियमके खिलाफ जोरदार आन्दोलन चलाने के साथ-साथ लोगोंके आवेशपर अंकुश रखनेकी क्षमता भी थी, और जो पूरी तरह व्यवस्था और कानूनके समर्थक थे, गिरफ्तार करनेका विवेक- हीन कृत्य करके भी हिंसाको न्योता दिया। तनाव तो किसी-न-किसी दिन खत्म होगा ही । अगर सरकार रौलट अधिनियमको कायम रखनेकी मूर्खता नहीं छोड़ती तो उसे हड़तालों, ऐसी सुसंगठित हड़तालोंकी पुनरावृत्तिके लिए जिनमें जनता द्वारा किसी प्रकारका बल प्रयोग न होगा और जिनमें उनके द्वारा एक बूंद भी रक्त न बहाया जायेगा, तैयार हो जाना चाहिए । जब सर्वसाधारण सत्याग्रहके सन्देशको हृदयंगम कर लेंगे तब हम चौधरी रामभजदत्त द्वारा कहे हुए मन्त्रको जिसका अर्थ न्यायाधिकरणने दण्डनीय षड्यंत्र के अस्तित्वको सिद्ध करनेके उद्देश्यसे धमकी देना लगाया है - हजारों सभा- मंत्रोंसे दुहरायेंगे। वह मन्त्र है " हमारे कष्ट दूर करो अन्यथा हम अपनी दुकानें और कारोबार बन्द कर देंगे और खुद फाकाकशी करेंगे । अलबत्ता [ कुछ लोगोंने ] “रौलट बिल हाय, हाय", "जॉर्ज [पंचम ] हाय, हाय", इस प्रकारके नारे लगाकर अथवा किसी खुफिया पुलिसके इंस्पेक्टरको पीटकर या उसे सभासे निकाल बाहर करके, या 'डंडा अखबार' जैसे लज्जाजनक पर्चे निकालकर या सम्राट्-साम्राज्ञीके चित्रोंको नष्ट करके एक महान् और कारगर प्रदर्शन के महत्त्वको अवश्य गिरा दिया था । इन कार्योंके लिए श्री शफी इत्यादि, जो शान्ति स्थापित करनेका प्रयत्न कर रहे थे, और उपरोक्त अभियुक्त किसी तरह जिम्मेवार नहीं ठहराये जा सकते। जिनके सम्बन्ध में दण्डनीय षड्यंत्र या उससे भी बदतर बात, राजाके विरुद्ध युद्ध छेड़ने जैसे कृत्योंमें भाग लेनेका कोई प्रमाण नहीं मिल सका हो और जिनका सम्पूर्ण चरित्र तथा समाजमें जिनकी प्रतिष्ठा ऐसे भड़कानेवाले कृत्योंमें उन्हें फँसने ही नहीं दे सकती, उन व्यक्तियोंके खिलाफ उक्त अभियोग लगानेका सरकारको क्या अधिकार था ? " युद्ध छेड़ने " का पारिभाषिक अर्थ कुछ भी हो, किन्तु एक कष्टकर कानूनके खिलाफ जोरदार आन्दोलन चलानेको 'युद्ध' कहना हास्यास्पद नहीं तो क्या है ? तब