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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जायेगी कि मेरे नाम लिखे गये जनरल स्मट्सके पत्र में दिये गये वचनका अर्थ क्या है; वह वचन यह है—"इस बातका खयाल रखा जायेगा कि उन्हें (मौजूदा कानूनोंको) न्यायसम्मत विधिसे और निहित अधिकारोंका उचित ध्यान रखते हुए अमलमें लाया जाये।" निवाससे सम्बन्धित निहित अधिकार वे अधिकार थे जिन्हें भारतीय १९०९ के पहलेसे भोगते चले आ रहे थे, अर्थात् वे समस्त ट्रान्सवालमें पट्टों के अन्तर्गत स्थिर जायदाद के स्वामित्वका अधिकार रखते थे । एक पुरानी बात भी कहना चाहता हूँ । १८८५ का कानून संख्या ३ ही, दक्षिण आफ्रिका जनतन्त्र तथा सम्राट् सरकारके बीच लम्बी चौड़ी लिखा—पढ़ीका विषय बन गया था और यह लिखा—पढ़ी सम्राट् सरकारकी ओरसे प्रिटोरियामें रहनेवाले ब्रिटिश एजेंटके द्वारा चला करती थी; उसके पश्चात् वह मामला अन्तिम निर्णय के लिए ऑरेंज फ्री स्टेटके उस समयके मुख्य न्यायाधीशके पास भेजा गया । उस न्यायाधीशने अपना मत इन शब्दोंमें घोषित किया : सन् १८८६ के संशोधित रूपमें १८८५ के कानून संख्या ३ को छोड़कर बाकी सब कानून लन्दन समझौतेके विपरीत हैं । इसलिए, इस निर्णयके पश्चात् पास किये गये ऐसे सभी कानून जो ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय प्रवासियोंकी स्वतन्त्रतापर और अधिक प्रतिबन्ध लगाते थे, इसके विपरीत पड़ते हैं और मेरा खयाल है कि मामलेके साम्यकी बात अलग रखते हुए इसीलिए श्री हारकोर्टने २७ जून, १९११ को संसदमें निम्नलिखित वक्तव्य दिया था :

उन कानूनों (स्वर्ण-कानून तथा बस्ती—संशोधनअधिनियम[१]) के खिलाफ शिकायतें भेजी गई हैं; अब उनके बारेमें दक्षिण आफ्रिकाकी संघ—सरकार जाँच—पड़ताल कर रही है। इस सरकारने अभी हालमें यह कह ही दिया है कि उस कानूनके बननेके पहलेसे भारतीय जो कारोबार करते आ रहे थे उसमें अथवा कारोबारके अधिकारका जो उपभोग करते आ रहे थे उसमें किसी प्रकारका हस्तक्षेप करनेका सरकारका इरादा नहीं है ।

इसी प्रकार १९१२ में श्री डी' विलियर्सने जो कि उस समय ट्रान्सवालके महान्यायवादी ( अटर्नी जनरल ) थे, कहा था : "रंगदार व्यक्तिका कोई भी अधिकार जिसे वह इस समय भोग रहा है इस नये अधिनियमके द्वारा नहीं छीना गया है।" भारतीयोंको श्री हारकोर्टके आश्वासन और इस कानूनके सम्बन्ध में श्री डी'विलियर्सकी व्याख्यापर भरोसा करनेका अधिकार था और अगर ट्रान्सवालका फैसला हमारे प्रतिकूल हुआ है तो संघ—सरकारका कर्त्तव्य है कि वह अब १९१४ के समझौतेकी रूसे ही नहीं बल्कि उपरोक्त आश्वासन और व्याख्याकी रूसे भी १९०८ के कानूनमें संशोधन करे और भारतीयोंकी स्वतन्त्रतापर और अधिक प्रतिबन्ध न लगाये । नये कानूनका मंशा प्रतिबन्ध लगाना ही है ।

मैं जानता हूँ कि आपपर कामका बहुत ही ज्यादा बोझ है । मुझे केवल इस बातकी आशंका है कि चूँकि आपको अपने मातहतों द्वारा तैयार की गई टिप्पणियोंके अनुसार ही काम करना पड़ता है और चूँकि संघ—सरकार—जैसी शक्तिशाली सरकार आपको अपनी बात दक्षिण आफ्रिकाके मुट्ठी भर ब्रिटिश भारतीयोंकी अपेक्षा कहीं ज्यादा आसानी—

  1. गोल्ड लों तथा टाउनशिप्स एमेंडमेंट ऐक्ट ।