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पत्र : सर जॉर्ज बार्द्धको

से मनवा सकती है, इसलिए भारतीयोंके पक्षका तथ्यों अथवा जानकारीके अभावमें अहित हो सकता है । क्या आपको मालूम है कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंने दक्षिण आफ्रिकामें [ लड़ाईके दिनों में ] एक आहत सहायक दलका संगठन किया था और उसने जनरल स्मट्सके नीचे काम भी किया था ? क्या यह नया कानून उनको पारितोषिक स्वरूप दिया गया है ? एक प्राथमिक अधिकारकी रक्षाको प्राप्त करने के निमित्त, आत्मसम्मान और न्यायके खयालसे जिसके वे अधिकारी हैं, मुझे लड़ाईके दिनोंमें की गई सेवाओंका जिक्र करनेकी जरूरत नहीं पड़नी चाहिए । मेरी प्रार्थना है कि आप कृपया संघीय संसदकी लोक—सभाकी प्रवर समितिकी रिपोर्टपर गौर करनेकी कृपा करें। यदि आपके पास उसकी कोई प्रति न हो तो मैं आपको दे सकता हूँ ।

देखता हूँ कि अचल सम्पत्तिके बारेमें आपके पास पूरे तथ्य मौजूद नहीं हैं। में जानता हूँ कि मेरी तरह आप भी इस बातपर दुःखी होंगे कि संघ सरकारने अपने उत्तरदायित्व तथा लिखित वचनको भुलाकर यह संशोधन स्वीकार कर लिया है, जिसके अनुसार

एशियाई लोग, कहीं रुपया लगानेके निमित्त वास्तविक रूपमें कर्जकी जमानतके सिवा, किसीकी जायदाद गिरवी नहीं रख सकते; और जिसमें यह व्यवस्था भी है कि यदि किसी एशियाटिक कम्पनीने इसी माहकी पहली तारीखके पश्चात् अचल सम्पत्ति प्राप्त की हो तो वह उसे दो सालके भीतर अथवा बादमें किसी अधिकारी अदालतके द्वारा नियत अवधिके भीतर बेच दे । अगर ऐसा न किया जायेगा तो वह जायदाद अदालतके हुक्मसे बेची जा सकेगी।

मैंने ये शब्द रायटरके २३ मईके तारसे उद्धृत किये हैं जिसे उसने केप टाउनसे भेजा था । आप देखेंगे कि इसके द्वारा समस्त ट्रान्सवालमें सम्पत्तिकी मिल्कियतके अधिकारोंकी जब्तीको पूरी तरह वैध कर दिया गया है। और साथ ही स्वर्ण क्षेत्र में बसे हुए भारतीय प्रवासियोंके व्यापारी हकोंकी जब्तीको भी वैध रूप दे दिया गया है । १८८५ के कानून ३ का कोई दुरुपयोग नहीं हो रहा था । भारतीय उतना ही करते थे जितना कानूनन वे खुले तौरपर करनेके अधिकारी थे और उनको इसकी छूट दी ही जानी चाहिए ।

मैं इस करुण-कथाको अधिक विस्तार नहीं देना चाहता । ट्रान्सवालमें बसे हुए ५,००० भारतीय प्रवासियोंके अधिकारोंकी हर हालतमें रक्षा करना भारत सरकारका कर्त्तव्य है ।

समस्याका समाधान मेरे विचारके अनुसार यह है— १८८५ का कानून ३ सड़कोंको नियत कर दे सरकारको यह अधिकार देता है कि उन स्थानों और उन जहाँ भारतीय अचल सम्पत्तिके मालिक बन सकते हैं। इस अधिकारकी रू से वह स्वर्णक्षेत्र, कस्बोंके हलकों और सड़कोंको एशियाइयोंके निवास और स्वामित्वके निमित्त घोषित कर सकती है और वह कर उगाहनेवाले अधिकारियोंको आदेश दे सकती है कि ये लोग वैध भारतीय प्रार्थियोंको उन हलकों और सड़कोंके सम्बन्धमें परवाने जारी कर दिया करें। यह व्यवस्था तबतक के लिए है जबतक उस आयोगकी नियुक्ति