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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं हो जाती, कार्यवाहक प्रधानमन्त्री, श्री मलान जिसका वचन दे चुके हैं। भारत सरकार (एक शक्तिमान प्रतिनिधि भेजकर) इस बातका इतमीनान कर सकती है। कि यह आयोग भी कहीं उसी तरह टाँय-टॉय फिस न हो जाये, जिस तरह सदनकी प्रवर समिति हो गई थी । साम्राज्यके अन्तर्गत प्रत्येक डोमिनियनको प्रवासपर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया जा सकता है; परन्तु अपनेको कथित सभ्य यूरोपका अंग मानने वालोंकी हैसियतसे ये राज्य कानूनके अनुसार आकर बसे हुए प्रवासियोंके धंधों तथा स्वामित्वके अधिकारोंको न कम कर सकते हैं, न छीन ही सकते हैं । प्रस्तावित आयोगके प्रयासका यह परिणाम निकलना ही चाहिए कि उपरोक्त प्रकारके प्रवासियोंके ऊपर लगे हुए सभी जाति—सम्बन्धी प्रतिबन्ध हटा दिये जायें।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया,३०-७-१९१९


४२०. पत्र : कल्याणजी मेहताको

बम्बई
जुलाई २६, १९१९

भाईश्री कल्याणजी,

मैं आपको पत्र लिखना बिलकुल भूल गया। मैं कल (रविवारको) रवाना होकर [ वहाँ ] अवश्य आऊँगा ।

जो सवारी गाड़ी वहाँ ६ बजे अथवा इसके आसपास पहुँचती है, उसमें आऊँगा । यदि आवश्यक न जान पड़े तो मुझे दो दिनसे अधिक न रोकिएगा। बिल्कुल जरूरी हो तो रोका जा सकता है। इस बातको मैं अभी यहीं छोड़ता हूँ ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र ( जी० एन० २६७०) की फोटो- नकलसे ।