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४२१. सत्याग्रह राजद्रोह नहीं है

[ जुलाई २७, १९१९][१]

हिन्दवासी' के मुकदमे में सुनाये गये फैसलेका एक उद्धरण प्रकाशित करते हुए 'मराठा'ने यह सुझाव दिया था कि उद्धृत अनुच्छेद में मजिस्ट्रेट द्वारा उठाये गये मुद्द बारेमें गांधीजीको स्पष्टीकरण करना चाहिए। गांधीजीने सुझाव मान लिया और अपना उत्तर प्रकाशनार्थ 'मराठा' को भेजा। फैसलेका वह हिस्सा नीचे दिया जा रहा है।

सत्याग्रहके राजनीतिक रूपका एक और पहलू है जिससे स्पष्ट हो जाता है. जैसा कि दिल्लीकी घटनाओंसे कि कानून-भंग सत्याग्रहका एक अन्तर्निहित अनिवार्य लक्षण है । सत्याग्रह-प्रतिज्ञाके सारसे सभी परिचित हैं । इस प्रतिज्ञाके द्वारा प्रतिज्ञा लेनेवाला सत्याग्रह-सभा जिन कानूनोंका तोड़ा जाना तय करे, उन कानूनोंकी सविनय अवज्ञा करनेके अधिकारका दावा करता है । 'सविनय अवज्ञा' का क्या अर्थ है, यह तो कभी समझाया नहीं गया। यह सर्वविदित है कि बम्बई में 'सविनय अवज्ञा' ने जब्त साहित्य बेचनेका स्वरूप ग्रहण किया था जो कि भारतीय दंड संहिताके खंड १२४ (अ) के अनुसार अपराध है। दूसरे शब्दोंमें यह कृत्य एक फौजदारी कानूनकी सक्रिय अवज्ञा है। इसके अतिरिक्त किसी ऐसे कानूनको 'सविनय अवज्ञा' करना, जो दूसरोंके हकोंकी रक्षा करता हो, प्रत्यक्षतः सभी प्रकारको व्यवस्था और कानूनका उच्छेदन करना है और उससे सहज ही कानून तथा व्यवस्थाकी रक्षक सरकार के प्रति घृणा और तिरस्कार पैदा होता है । अर्थात् राजनैतिक सत्याग्रहका यह पहलू तात्त्विक रूपमें और परिणामको दृष्टिसे राजद्रोहपूर्ण है ।

श्री गांधीने इसके उत्तरमें कहा :

'हिन्दवासी' के मुकदमे के सम्बन्ध में मजिस्ट्रेटने जो फैसला सुनाया है उसमें से आपने सविनय अवज्ञाके बारेमें उनके विचार उद्धृत करके मुझसे कहा है कि मैं इस फैसलेमें उठाये गये मुद्देका स्पष्टीकरण करूँ। मैं सहर्ष ऐसा कर रहा हूँ ।

जीवनके एक भव्य सिद्धान्तके बारेमें जितनी ज्यादा गलतफहमियाँ और गलत बयानियाँ आपके द्वारा उद्धृत इस अनुच्छेद में हैं उतनी किसी एक ही अनुच्छेदमें भरना सचमुच बहुत मुश्किल है । इस अनुच्छेदके आरम्भमें लिखा है कि

सत्याग्रहके राजनैतिक रूपका एक और पहलू है जिससे स्पष्ट हो जाता है—जैसा कि दिल्लीकी घटनाओंस कि कानून—भंग सत्याग्रहका एक अन्तर्निहित अनिवार्य लक्षण है ।

  1. गांधीजीका यह लेख मराठा में इसी तारीखको प्रकाशित हुआ था । १५-३२
१५-३२