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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जबतक तटस्थ परीक्षकोंकी तरफसे दिल्लीकी घटनाओंका भेद न खुले तबतक हम यह नहीं जान सकेंगे कि दिल्लीकी घटनाओंके बारेमें कुसूर किसका था। परन्तु इतना तो याद रखना ही चाहिए कि गत ३० मार्च अथवा ६ अप्रैलको सविनय कानून—भंग शुरू ही नहीं हुआ था । स्वामी श्रद्धानन्दजीका तो यह कहना है कि कानूनका भंग अधिकारियोंके द्वारा किया गया था और यह कि वहाँ जो मुट्ठीभर सत्याग्रही उपस्थित थे, उन्होंने तो अपनी जान जोखिममें डालकर भीड़ और स्थानीय अधिकारीके रोषको नियन्त्रित करनेकी भी कोशिश की। फैसलेमें आगे बताया गया है कि

इस प्रतिज्ञाके द्वारा प्रतिज्ञा लेनेवाला सत्याग्रह-सभा जिन कानूनोंका तोड़ा जाना तय करे, उन कानूनोंकी सविनय अवज्ञा करनेके अधिकारका दावा करता है।

इस वाक्यमें हकीकतको गलत रूपमें पेश करने और साथ ही हकीकतको दबा देनेका दोष भरा हुआ है । प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञा करनेवालोंको सत्याग्रह—सभाके तय किये हुए किसी भी कानूनकी सविनय अवज्ञाका नहीं, परन्तु अपनी ही नियुक्त की हुई विशेष समितिके द्वारा चुने गये कानूनोंकी सविनय अवज्ञा करनेका अधिकार देती है । यह भेद महत्त्वपूर्ण है। विद्वान् मजिस्ट्रेटने यह बात नहीं कही कि कानूनकी सविनय—अवज्ञा करते वक्त सत्याग्रही सत्यपर डटे रहने और किसीके भी जान—मालको नुकसान न पहुँचाने के लिए बँधा हुआ है। यह वस्तु कम महत्त्वकी नहीं है । आगेवाले वाक्य में मजिस्ट्रेट अपने जिस अज्ञानका प्रदर्शन करता है, वह न्यायाधीशके लिए तो अक्षम्य ही है। वह कहता है कि सविनय अवज्ञा क्या है, यह कभी समझाया ही नहीं गया । यदि वह कानूनकी सविनय अवज्ञाके लिए ही सजा देने बैठा था, तब उसका पूरी तरह यह समझ लेना फर्ज था कि यह वस्तु क्या है । सत्याग्रह-सम्बन्धी सभी पत्रिकाएँ, जिनमें थोरोका प्रसिद्ध लेख[१]'सिविल डिसओबिडियन्स' भी है, उसे उपलब्ध थीं ।

सविनय अवज्ञा क्या है ?

अब मजिस्ट्रेटके अगले वाक्योंका अनौचित्य बतानेसे पहले मैं संक्षेपमें यह समझानेकी कोशिश करूँगा कि कानूनकी सविनय अवज्ञाका क्या अर्थ है ? सविनय अवज्ञा विनयहीन या अनैतिक अवज्ञासे उलटी चीज है । इसलिए सविनय अवज्ञा केवल उन्हीं कानूनोंकी हो सकती है जो नीतिसे समर्थित न हों। कानून फौजदारी और दीवानी दो प्रकारके होते हैं। कानूनकी सविनय अवज्ञा करनेवाला भारतीय दण्ड संहिताके खण्ड १२४ (अ) जैसे कृत्रिम फौजदारी कानून ( कानून ?) की सविनय अवज्ञा करनेमें आगापीछा न करेगा। इस कानूनके अनुसार न्यायाधीशकी सनक अथवा पूर्वग्रहके अनुसार किसी भी वस्तुको राजद्रोहात्मक कहा जा सकता है । सविनय अवज्ञा करनेवाला दूसरोंके अधिकारोंपर आक्रमण नहीं करेगा । वह किसी भी व्यक्ति अथवा संस्थाके प्रति द्वेष या तिरस्कार पैदा करनेके खयाल से कोई भी काम नहीं करेगा । परन्तु वह

  1. देखिए परिशिष्ट २ ।