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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
उद्धरणमें आगे चलकर कहा गया है :
इसके अतिरिक्त, किसी ऐसे कानूनकी 'सविनय अवज्ञा' करना, जो दूसरोंके हकोंकी रक्षा करता हो, प्रत्यक्षतः सभी प्रकारको व्यवस्था और कानूनका उच्छेदन करना है और उससे सहज ही कानून और व्यवस्थाकी रक्षक सरकार के प्रति घृणा और तिरस्कार पैदा होता है । अर्थात् राजनैतिक सत्याग्रहका यह पहलू तात्त्विक रूपमें तथा परिणामकी दृष्टिसे राजद्रोहपूर्ण है ।

सविनय कानून—भंगके सम्बन्धमें मेरे उपरोक्त स्पष्टीकरणके बाद इसपर और अधिक विवेचन करना अनावश्यक है। यदि श्री जेठामलको[१]सत्याग्रहके सिद्धान्तोंकी बिलकुल गलत कल्पनाके आधारपर ही सजा दे दी गई हो, तो उन्हें अविलम्ब छोड़ दिया जाना चाहिए ।

आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २-८-१९१९

४२२. तार : पोलक आदिको

बम्बई
जुलाई २८, १९१९

सेवामें

माननीय शास्त्री, इंडिया हाउस
श्रीमती नायडू, लाइकम होटल, पिकँडली

लन्दन

वाइसराय और मित्रोंकी सलाहपर सत्याग्रह फिलहाल स्थगित | अब दूनी शक्तिसे आन्दोलन चलाकर रौलट कानूनको वापस करानेका दायित्व नेताओंपर आता है । मुनासिब अवधिके अन्दर कानून वापस न लिया गया तो सत्याग्रह फिर छिड़ना अवश्यम्भावी ।

[ अंग्रेजीसे ]
बॉम्बे सीक्रेट एब्स्ट्रैक्ट्स, १९१९, पृष्ठ ६७९-८० तथा (एस० एन० ६७७०) की फोटो- नकलसे ।
 
  1. जेठामल परसराम, सम्पादक, हिन्दवासी ।