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४२३. भाषण : सूरत में[१]

जुलाई २८, १९१९

दोपहरको डेढ़ बजे गांधीजीने स्थानीय सार्वजनिक कॉलेजके विद्यार्थियोंके सम्मुख भाषण दिया। उन्होंने विद्यार्थियोंको गुरुके प्रति आदर भाव रखनेकी सीख दी। माँ—बाप और गुरुको एक समान मानना चाहिये, यह कहने के साथ—साथ उन्होंने कहा कि गुरु जब नीति विरुद्ध और हृदयको आघात पहुँचानेवाला आदेश दे उस समय शिष्य विनयपूर्वक उसका उल्लंघन कर सकता है। लेकिन ऐसा प्रसंग हजारमें कभी एक बार ही आ सकता है । समय और वचन इन दोनों का उपयोग कंजूसकी तरह करना चाहिए। ऐसा कहने के बाद उन्होंने अपने विद्यार्थी जीवनका अनुभव कह सुनाया ।

ग्रेजुएट नौकरीके लिए नहीं बनना है । आजीविका कमानेका उपाय नौकरी नहीं है । आजीविका तो हमें शरीर—श्रम करके कमानी है । एक रूसी लेखकने एक सुन्दर शब्द गढ़ा है "ब्रेड लेबर"। यह आपको किसी शब्दकोषमें नहीं मिलेगा । शिक्षा मस्तिष्कका विकास करनेके लिए है और मस्तिष्कको विकसित करनेका उद्देश्य हृदयको विकसित करना है न कि यह बतलाना—जैसा कि आजकल अमेरिका और फ्रांसमें किया जाता है— चोरी कैसे करनी चाहिए तथा खून किस तरह किया जाना चाहिए।

उन्होंने आगे कहा, [ विद्यार्थियोंको ] निर्भीकताका गुण अपनाना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
गुजरात मित्र अने गुजरात दर्पण, ३-८-१९१९

४२४. भाषण : स्वदेशी भंडारके उद्घाटन समारोह में

सूरत
जुलाई २८, १९१९

मैं बैठे-बैठे दो-चार शब्द कहूँगा । इस भंडारका उद्घाटन मैंने किया है। मैं चाहता हूँ, इसकी सदा उन्नति हो, किन्तु उन्नति तभी होगी जब इसके व्यवस्थापक बराबर ईमानदारी बरतें, और ऐसा मानकर इसे चलायें कि यह भंडार लोगोंकी सेवा करनेके लिए ही खोला गया है। श्री कल्याणजीने मुझे बताया है कि शुद्ध स्वदेशी व्रत पालन करनेवालोंसे कपड़ेपर सवा छः प्रतिशत तथा अन्य लोगोंसे सवा सात प्रतिशत मुनाफा लिया जायेगा । इस भंडारके खुलनेपर कपड़ेकी दूसरी दुकानोंका क्या होगा, ऐसा सोचना आवश्यक नहीं है । दूसरी दूकानें लोक-सेवामें स्पर्धा करेंगी तो

  1. इसे १-८-१९१९ को बॉम्बे क्रॉनिकलमें प्रकाशित विवरणसे मिला लिया गया है ।