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भाषण : सूरत में स्वदेशीपर

बात है कि सब लोग भारतकी खुशहाली चाहते हैं । ऐसा कौन होगा जो खुशहाली न चाहता हो । यदि आप अपने मनमें स्वदेशी व्रतका पालन करनेका निश्चय करेंगे तो आपके मनमें यह विचार आयेगा कि कपड़ा कैसे तैयार किया जाये । मिलोंसे जो कपड़े खरीदते हैं उनके बदले हाथसे रुई कातकर सूत और फिर सूतको बुनकर कपड़ा तैयार किया जाना चाहिए। इसमें बहुत मुनाफा है । सूतके भाव वस्त्र तैयार हो सकता है। स्त्रियोंके पास काफी अवकाश होता है । मैं, आप तथा जो महिलाएँ यहाँ उपस्थित हैं, वे सब इसके गवाह हैं । जैसे हम अपने लिए भोजन पकाते हैं, वैसे ही हमें अपने वस्त्र भी बनाने चाहिए। यदि आप भारतके लिए स्वराज्य और स्वाधीनता चाहते हैं तो उसका मूल आधार स्वदेशी है । अन्तमें, मैं इस भंडारकी दिनोंदिन तरक्कीकी कामना करता हूँ और आशा करता हूँ कि इस उद्योगको चलाने में ईमानदारीसे काम लिया जायेगा तथा देश-सेवा और देशभाइयोंके हितका ध्यान रखा जायेगा ।

[ गुजरातीसे ]
गुजरात मित्र अने गुजरात दर्पण,३-८-१९१९


४२५. भाषण : सूरत में स्वदेशीपर

जुलाई २८, १९१९

श्री गांधी गत सप्ताह से पहले के सप्ताहमें सूरत आये थे । वहाँ उन्होंने एक शुद्ध स्वदेशी वस्त्र-भंडारका उद्घाटन किया और २८ जुलाईकी शामको स्वदेशीके सिद्धान्तोंपर एक लम्बा भाषण दिया। इस विषयपर अबतक जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भाषण दिये गये, यह इनमें से एक था । भाषण नीचे दिया जाता है :

श्री गांधीने इस विषयको आरम्भ करनेसे पूर्व थोड़ा समय एक अन्य उपयोगी बातको दिया। उनसे पहले एक वक्ताने कहा था कि खेद है, कुछ सज्जन सत्याग्रहियोंके प्रति सहानुभूतिशून्य रुख रखते हैं और ऐसा मालूम होता है कि वे सत्याग्रहके नामसे ही डरते हैं। उनके इस कथनका उल्लेख करते हुए श्री गांधीने कहा कि अवश्य ही कुछ ऐसे लोग हैं जिनके मनमें भयका भाव है; उनसे अधिक सौभाग्यशाली कुछ ऐसे लोग हैं जिनके मनमें भय नहीं है । किन्तु जिनके मनमें भय नहीं है, उन्हें उन लोगोंसे नाराज होनेका कोई अधिकार नहीं है, जिनके मनमें भय है। यदि पहले प्रकारके लोग यह अनुभव करके कि अन्य लोगोंको भी उनकी तरह निर्भय होना चाहिए, उन्हें आशाके अनुकूल नहीं पाते और चिढ़ जाते हैं तो उन्हें उस भावनासे काम लेना चाहिए जिसकी अंग्रेजी शब्द 'चेरिटी' (उदारता) से ठीक-ठीक अभिव्यक्त हो जाती है । जो मनुष्य नाराज होता है उसे चाहिए कि वह अपनी