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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नाराजी अपने ही ऊपर उतारे और इस बात को समझनेका प्रयत्न करे कि मनुष्यके निर्माण में समय, स्थान और स्थितियोंका बहुत बड़ा हाथ होता है ।

स्वदेशीमें स्वराज्य

मुख्य विषयपर आते हुए श्री गांधीने कहा : यह कहना कि हमें स्वराज्य स्वदेशीसे ही मिलेगा, बिल्कुल ठीक है । जिस देशके लोग भोजन और वस्त्रकी अपनी आवश्यकताओंकी उचित व्यवस्था नहीं कर सकते, वे स्वराज्यके कतई योग्य नहीं हैं। यह एक स्वयंसिद्ध सत्य है । इस पृथ्वीपर एक भी ऐसा देश नहीं है जो अपना भोजन और वस्त्र न जुटा सके और फिर भी वह स्वराज्यका सुख भोग रहा हो । स्वराज्यकी कैसी भी व्याख्या क्यों न की जाये, लेकिन यह बात असंदिग्ध है कि केवल वे ही स्वराज्यका उपभोग कर पाते हैं जो स्वावलम्बी हैं । यहाँतक कि दक्षिण आफ्रिकाकी असभ्य जातियाँ भी स्वराज्यका उपभोग कर रही हैं। ये नीग्रो लोग अपने लिए खाद्य सामग्री और वस्त्र स्वयं पैदा करते हैं । वे मक्का और मांस (शिकार) पर गुजारा करते हैं और जिन पशुओंको भारते हैं उनकी खालसे अपने तन ढकते हैं। जब ये लोग असभ्यसे 'सभ्य' बनने लगे और अपने भोजन वस्त्र के लिए दूसरोंपर निर्भर रहने लगे तो उनसे वह थोड़ा-सा स्वराज्य भी, जिसका वे उपभोग कर रहे थे, छिन गया। ऐसा प्रत्येक राष्ट्र, जो अपनी इन दो मुख्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरोंका आश्रित हो गया, दुर्गतिको प्राप्त हुआ है।

जापानी खतरा

श्री गांधीने कहा, मैंने कुछ दिन पूर्व अखबारोंको एक पत्र सत्याग्रह रोके रखने की घोषणा करते हुए भेजा था। इसमें मैंने कहा था कि स्वदेशीके कारण लंकाशायरका अस्वाभाविक स्वार्थ समाप्त हो जायेगा और उससे अंग्रेजोंके साथ हमारे सम्बन्ध शुद्ध होने में सहायता मिलेगी। किन्तु मेरा खयाल है कि इसी पत्रमें मैंने एक बात इससे भी बड़ी कही है और वह यह है कि स्वदेशी हमें जापानी खतरेसे भी मुक्त कर देगा ।

उन्होंने कहा, इस जापानी खतरेका हमारे लिए क्या मतलब है, अगर यह बात हम अनुभव नहीं करते तो इसका यही अर्थ है कि हमने अभी स्वराज्यका पहला पाठ भी नहीं पढ़ा है । जापान धीरे-धीरे और लगातार हमपर अपना प्रभुत्व जमा रहा है । पिछले चार सालों में उसका निर्यात व्यापार कई सौ गुना बढ़ गया है। हम जिस ओर भी निगाह डालते हैं हमें उसी ओर जापानी माल दिखाई देता है, जापानी दियासलाइयाँ, जापानी साड़ियाँ, जापानी साबुन, जापानी छाते और अन्य जापानी चीजें आदि। इसका अर्थ क्या है ? इसका अर्थ है जापानका अधिकाधिक प्रभुत्व । जैसे साहूकार गरीब किसानका शोषण करता है और उसे गरीब बना देता है, वैसे ही जापान भारतका शोषण कर रहा है और उसे गरीब बना रहा है । जापान बड़ी तेजीसे भारतका साहूकार बनता जा रहा है। इंग्लैंडको या तो लड़ना पड़ेगा या जापानका प्रभुत्व मानना पड़ेगा ।