पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 15.pdf/५३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०५
भाषण : सूरत में स्वदेशीपर

चीनके साथ अफीमकी जो लड़ाई[१] हुई वह क्या थी ? यदि चीन अपने लिए स्वयं अफीम पैदा करता होता तो अफीमकी लड़ाई हुई हो न होती । इतिहासके विद्यार्थी जानते हैं कि वह लड़ाई इंग्लैंडने स्वार्थान्ध होकर लड़ी थी। जबतक इंग्लैंडका उपनिवेशोंके साथ सम्बन्ध स्वार्थपर आधारित है तबतक यह सम्बन्ध शुद्ध नहीं है । किन्तु जो उपनिवेश समय रहते चेत गये, उन्होंने स्वयं तो सीखा ही, इंग्लैंडको भी सबक सिखा दिया ।

आर्थिक स्वतन्त्रता

लोग आर्थिक स्वतंत्रताकी बातें कर रहे हैं। मैं तो यह नहीं मानता कि यदि इंग्लंडने आर्थिक स्वतन्त्रता यों ही दे दी तो उस आर्थिक स्वतन्त्रताका कोई मूल्य होगा । वास्तविक आर्थिक स्वतन्त्रता तो स्वदेशी वस्तुओंको अपनानेसे ही मिलेगी । अर्थशास्त्री भी मानते हैं कि आर्थिक स्वतंत्रताके बिना स्वराज्य व्यर्थ है । किन्तु जब मेरे जैसा कोई व्यक्ति उनके सम्मुख स्वदेशीका सुझाव रखता है, तो वे उसपर आपत्ति करते हैं । किन्तु मैं उनकी आपत्तियों की परवाह नहीं करता क्योंकि मेरा विश्वास है कि स्वदेशीमें विस्तृत और व्यापक आर्थिक स्वतन्त्रताका समावेश हो जाता है और यह आर्थिक स्वतन्त्रता ठीक वसी ही है जैसी हम चाहते हैं। यदि इंग्लैंड हमें आर्थिक स्वतन्त्रता दे भी दे और हम स्वदेशीके नित्य सिद्धान्तोंपर अमल न करें तो हम किसे दोष देंगे ? स्वदेशी वस्तुओंको अपनाये बिना हम इंग्लैंडके फंदेसे छूटकर जापानके फंदे में फँस जायेंगे, जिसका अर्थ होगा—कढ़ाईसे निकलकर भट्टीमें गिरना । हमारे लिए जापानके प्रति इंग्लैंडके संधिगत दायित्वोंकी अवहेलना करना असम्भव होगा । हमारी सरकार हमसे कह देगी कि जापानी मालपर चुंगी न लगायें। इसका कारण वह यह बतायेगी कि यदि ऐसा न हुआ तो उससे दूसरी लड़ाई छिड़ जायेगी। यह संकट अगले पाँच वर्षोंमें आ जायेगा । हम इस संकटसे कैसे बच सकते हैं ? इसका मार्ग केवल एक है और वह है— शुद्ध आर्थिक सिद्धान्तोंको भली—भाँति समझकर उनका अनुगमन करना । यदि इस पृथ्वीपर कोई ऐसा देश है जो अपने भोजन-वस्त्र स्वयं पैदा नहीं करता, तो वह इसी योग्य है कि उसे उसके हालपर छोड़ दिया जाये या उसके सम्बन्धमें स्वराज्यकी आशा ही न की जाये। यदि ऐसे देश में स्वराज्य कायम रह सकता है तो वह निश्चय ही शैतानी स्वराज्य होगा । उस देशके लोग अपनी चालों और कूटनीतियोंसे या अपनी जोर-जबरदस्तीसे दूसरे देशोंको धोखा देंगे और उनका शोषण करेंगे और उनके भोजन-वस्त्रों अपहरण करेंगे। प्रत्येक सभ्य देश, सिवा इंग्लैंडके, अपना भोजन-वस्त्र स्वयं पैदा करता है । इंग्लैंड अपने

  1. विदेशी व्यापारियों द्वारा चीनमें अफीम लानेके कारण सन् १८४० में चीन और ब्रिटेनमें लड़ाई हुई थी । इसके पन्द्रह साल बाद चीनमें चोरीसे बड़े पैमानेपर अफीम लानेके कारण दूसरी बड़ी लड़ाई हुई। उसके बाद चीनमें अफीमकी खेती करनेकी अनुमति दे दी गई और भारतसे चीनमें अफीम मँगवाना वैध कर दिया गया ।