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भाषण : सूरत में स्वदेशीपर

दूसरे देशोंके इतिहासको पढ़नेसे पता चलता है कि जो देश स्वदेशीकी नीति न अपनानेके कारण अपनी आर्थिक स्वतन्त्रताको कायम नहीं रख सके, उनका पतन हो गया। उसी प्रकार जो देश आर्थिक दृष्टिसे स्वाधीन रह सके वे स्वराज्य भोगते रहे। इस सम्बन्धमें हम यूरोपके छोटे देशोंका उदाहरण लें। वे आर्थिक दृष्टिसे स्वतन्त्र देश हैं; क्योंकि वे स्वदेशीके सिद्धान्तका अनुगमन करते हैं । प्रत्येक स्वतन्त्र देश अपने तरीकेसे स्वदेशीका अनुगामी है। स्विट्जरलैंड और डेनमार्क अपने—अपने लोगोंके अनुकूल धन्धोंकी रक्षा करते हैं और उनमें किसी भी विदेशीको हस्तक्षेप नहीं करने देते। भारत अपने देशमें अन्न और कपड़ा उत्पन्न करे तो वह उसका स्वदेशीपर आरूढ़ रहना होगा। जहाँ तक खाद्य सामग्रीका सम्बन्ध है, हमें सौभाग्यसे स्वदेशीको प्रतिज्ञा लेनेकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यहाँके लोग ज्यादातर अपनी खानेकी चीजें यहीं पैदा करते हैं । कुछ अपवाद जरूर हैं जिन्हें स्कॉच ओट्सकी जरूरत हो सकती है। हाँ, कपड़के सम्बन्धमें हमारी स्थिति बहुत ही खतरनाक है। जो लोग कभी बढ़िया—बढ़िया सूती और रेशमी कपड़ा तैयार करते थे, वे ही आज जापान और लंकाशायरका मुँह ताकते हैं। हमें लंकाशायरके अस्वाभाविक स्वार्थ और जापानके खतरेसे केवल स्वदेशी धर्म ही बचा सकता है।

संयुक्त प्रयत्न

किन्तु में यह आशा नहीं करता कि में अकेला ही कोई बड़ा काम कर सकता हूँ । अकेले काम करनेकी मेरी इच्छा भी नहीं है। मैं तो सच्चे दिलसे यह चाहता हूँ कि मुझे मेरे देशके ३१ करोड़ लोगोंका और अंग्रेजोंका भी सहयोग मिले। में मानता हूँ कि मुझे स्वदेशीने मतवाला बना दिया है। जिस तरह दमयन्ती नलकी खोजमें जंगलोंमें भटकती फिरती थी और मार्गस्थित पेड़ों और पत्थरोंसे भी नलका पता पूछती थी, इसी तरह मैं भी हर छोटी चीजसे जो मुझे मिलती है, पूछता हूँ, मुझे स्वदेशीका मार्ग बताओ। मैं लोगोंसे कहता हूँ कि वे कमर कसकर तैयार हो जायें, एक सालके लिए ही सही, और मैं उनसे वादा करता हूँ कि उसका जो परिणाम निकलेगा उससे संसार भौंचक्का रह जायेगा । मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि उन्हें किसी चीजके बहिष्कारकी आवश्यकता नहीं है, बल्कि अपना माल खुद बनाने और केवल उसीको उपयोगमें लानेकी आवश्यकता है ।

इस दिशामें सफलता प्राप्त करनेके लिए कई चीजोंकी आवश्यकता है। इनमें से एक है कपड़ा बनाने में व्यापारिक ईमानदारी और दूसरी है धनी लोगोंमें अपने गरीब भाइयोंके प्रति सहानुभूति और सौहार्द । धनी लोगोंको यह अनुभव करना चाहिए कि देशमें गरीब लोग अधनंगे नहीं रहने चाहिए और उनमें उनको कपड़ा देनेकी सच्ची लगन होनी चाहिए। प्रत्येक स्त्रीको कमसे कम एक घंटा रोज सूत कातनेमें लगाना चाहिए। यदि ईमानदारी, उद्योग, देशभक्ति और धनको समन्वित कर दिया जाये तो इसका कितना अच्छा परिणाम हो सकता है !