मेरा निवेदन है कि लोग अपने भीतरसे इस अन्धविश्वासको निकाल दें कि देशका काम कारखानोंके बिना चल ही नहीं सकता। मैं कारखानोंका विरोधी नहीं हूँ; किन्तु में यह मानता हूँ और सर फजलभाई भी इस बारेमें मुझसे सहमत हैं कि हमें समस्त देशके लिए पर्याप्त कपड़ा बनाने लायक मिलें खोलनेमें ५० साल लग जायेंगे। अभी तो स्थिति यह है कि देशमें मिलोंकी अपेक्षा हाथकरघोंसे अधिक कपड़ा बनाया जाता है। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यदि देशमें सर्वत्र हाथसे सूत कातना और कपड़ा बुनना शुरू कर दिया जाये तो देश कपड़के मामलेमें बहुत जल्दी स्वावलम्बी हो जायेगा। भारतमें २१ करोड़ किसान हैं, यदि वे सभी अपने फुरसतके चार महीने सूत कातने और कपड़ा बुननेमें लगा दें तो बड़ी मात्रामें कपड़ा तैयार होगा। अन्तमें में आपको यह और बताना चाहता हूँ कि पुराने जमानेमें भारत वस्त्रके मामलेमें आत्मनिर्भर था और यदि लोग मेरे दिये हुए इन दोनों सुझावोंपर अमल करें तो वह आज भी आत्मनिर्भर बन सकता है।
अन्तमें श्री गांधीने सूरतके लोगोंसे अनुरोध किया कि वे स्वयंसेवकोंके बड़े—बड़े दल गाँवोंमें भेजें जो ग्रामीणों में स्वदेशीका प्रचार करें और उन्हें स्वदेशीका मर्म समझायें, ताकि गाँवोंमें चरखे और करघे फैल जायें।
यंग इंडिया, १६-८-१९१९
४२६. जगन्नाथका मामला
मुझे बड़े दुःखके साथ जनताका ध्यान पंजाबमें होनेवाले अन्यायके एक तीसरे मामले की ओर दिलाना पड़ रहा है। यह मामला बाबू कालीनाथ राय—जैसे बड़े आदमीका या 'प्रताप' के सम्पादक लाला राधाकृष्ण—जैसे उनसे कुछ कम प्रसिद्ध व्यक्तिका नहीं है। इस व्यक्तिका नाम, जिसके कागज मुझे भेजे गये हैं, जगन्नाथ है जो एक अति साधारण आदमी है और जिसका किसी सार्वजनिक कार्यसे कोई सम्बन्ध नहीं है। उसे एक मार्शल लॉ अदालतसे भारतीय दण्ड संहिताकी धारा १२१ के अन्तर्गत बादशाहके विरुद्ध लड़ाई करनेके अभियोगमें आजन्म काले पानीकी सजा दी गई है और उसकी सम्पत्ति जब्त कर ली गई है। उसके मामलेके तथ्य उसकी दरख्वास्त में, जो अन्यत्र छपी है, साफ—साफ दिये गये हैं। यह दख्वास्त पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड मैकलेगनके नाम है । पाठकोंको [ अन्यत्र ] गुजरांवालाके पन्द्रह अभियुक्तोंके, जिनमें से एक जगन्नाथ है, मामलेमें दिया गया फैसला भी मिलेगा। इस मामलेके सम्बन्धमें फैसलेका मजमून यह है :
जगन्नाथ, अभियुक्त सं० १०, ने ५ तारीखको सभाके नोटिस लाहौरमें छपवाये थे और वह १२ और १३ तारीखकी सभाओंमें भी मौजूद था। किन्तु हमें यह माननेमें तो कोई झिझक ही नहीं है कि वह उक्त दो सभाओंमें उपस्थित था और उसकी