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पत्र : लेफ्टिनेंट गवर्नरके निजी सचिवको

उसकी इस अतिसाधारण स्थितिको देखते हुए उसके साथ किया गया यह अन्याय और भी अधिक दुःखजनक हो जाता है। और उससे जनताका यह दुहरा कर्त्तव्य हो जाता है कि वह बादशाहके छोटेसे—छोटे प्रजाजनके साथ भी अन्याय न होने दे। पंजाबके माननीय लेफ्टिनेंट गवर्नरने लाला राधाकृष्णके मामलोंमें जो निर्णय किया है उससे यह आशा बँधती है कि इस मामलेमें भी शीघ्र न्याय किया जायेगा। बाबू कालीनाथ राय और लाला राधाकृष्णके मामले गैर—कानूनी थे तो यह मामला सम्भवतः उनसे भी ज्यादा गैर—कानूनी है, क्योंकि इसमें मार्शल लॉके जजोंने दण्ड देनेके लिए अधीर होकर आयोगकी वापसीतक का इन्तजार नहीं किया—उस आयोगकी वापसीका, जिसकी मंजूरी स्वयं उन्होंने दी थी और जिसकी वापसीपर अभियुक्तकी स्वतन्त्रता, और सम्भवतया उसका जीवन, निर्भर करता था ।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ३०-७-१९१९

'४२७. पत्र : लेफ्टिनेंट गवर्नरके निजी सचिवको

लैबर्नम रोड
[जुलाई ३०, १९१९ को या उसके बाद][१]

निजी सचिव

माननीय लेफ्टिनेंट गवर्नर
लाहौर

प्रिय महोदय,

मैं इसके साथ 'यंग इंडिया' का एक अंक भेज रहा हूँ । इसमें जगन्नाथका मामला दिया गया है। उन्हें अभी हालमें अपराधी करार दिया जाकर आजन्म कालेपानी और सम्पत्ति जब्तीकी सजा दी गई है। मुझे मालूम हुआ है कि उन्होंने अपने मामलेपर नजरसानी और उक्त सजाको रद करनेकी दरख्वास्त दी है जो श्रीमान्‌के विचाराधीन है। मेरी विनम्र सम्मतिमें इस मामलेमें बहुत ही स्पष्ट अन्याय हुआ है । मार्शल लॉ अदालतका अपने नियुक्त किये गये आयोग (कमिशन) की वापसी तक ठहरे बिना उतावली में सजा सुना देना स्वयं फैसलेके लिए घातक है। दरख्वास्तमें दिये गये तथ्य अभियुक्तकी अपराधके दिन अनुपस्थितिको पूर्णतया सिद्ध करते प्रतीत होते हैं। इसलिए मेरा निवेदन है कि यह सजा तत्त्वतः और कानूनन दोनों दृष्टियोंसे अनुचित । इसलिए मैं सादर विश्वास करता हूँ कि श्रीमान् इस सजाको रद कर देंगे और गरीब प्रार्थीको रिहा करा देंगे ।

आपका विश्वस्त,

अंग्रेजी (एस० एन० ६७६६) की फोटो नकलसे ।

  1. पत्रमें उल्लिखित यंग इंडिया का अंक ३०-७-१९१९ का था।